Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 164
________________ जैन आचार - शास्त्र के ग्रन्थ जैन आचार का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में विपुल मात्राओं में लिखे गये हैं। जैन परम्परा के जो आचार ग्रन्थ हैं उनका क्रमिक अध्ययन इस प्रकार से किया जा सकता है श्रमणाचार : १. आचारांग २. दशवैकालिक ३. आवश्यक सूत्र ४. आचारदशा ५. बृहत्कल्प ६. व्यवहार ७. निशीथ ८. महानिशीथ ९. पंचकल्प श्रावकाचार : १. उपासक दशांग २. धर्मबिन्दु ३. योगशास्त्र ४. तत्त्वार्थसूत्र ५. आचार दिनकर ६. रत्नकरण्ड श्रावकाचार ७. वसुनन्दि श्रावकाचार ८. सागारधर्मामृत ९. अमितगति श्रावकाचार १०. उपासकाध्ययन जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १६३ Jain Education International १०. जीतकल्प ११. पिण्डनिर्युक्ति १२. ओघनियुक्ति १३. मूलाचार १४. मूलाराधना १५. अनगार धर्मामृत १६. आचारसार १७, प्रवचनसारोद्धार १८. यति-जीतकल्प ११. ज्ञानार्णव १२. श्रावक प्रतिक्रमण १३. पंचप्रतिक्रमण १४. पाक्षिक सू १५. सावयपणत्ति १६. सावयधम्मविहि १७. पुरुषार्थसिद्धयुपाय १८. श्रावकाचार १९. लाटी संहिता २०. श्राद्धविधि २१. श्रावकधर्मप्रदीप आचार, कल्प और समाचारी श्रमण परम्परा में और मुख्यत: जैन परम्परा में आचार पर अत्यधिक बल दिया गया है, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है । आचार शब्द को लेकर ही जैनों में विभिन्न सम्प्रदाय खड़े हुए हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बरों में मुख्यतः परिग्रह एवं अपरिग्रह की व्याख्या को लेकर ही भेद पड़ा है। श्वेताम्बरों की मान्यता के अनुसार मूर्च्छाभाव ही परिग्रह है, वस्तु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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