Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 169
________________ १६८ अध्यात्म-प्रवचन आजकल के अल्पश्रुतज्ञ महानुभाव इन दो को ही आचार समझ बैठे हैं। वास्तव में उनकी यह मान्यता आचार विरुद्ध है। क्योंकि शास्त्रों में स्थान-स्थान पर इस सत्य का निर्देश है कि ज्ञान के अभाव में जो आचार होता है, वह मिथ्याचार है तथा जो तप होता है वह बालतप है। मिथ्याचार एवं बाल-तप मोक्ष के साधन नहीं हो सकते। अतः शास्त्रों में श्रुतधर्म अथवा ज्ञानाचार का महत्त्व सिद्ध हो जाता है। दशवैकालिक सूत्र में भी कहा गया है कि ज्ञान के अभाव में दया अर्थात् चारित्र सम्यक्चारित्र नहीं हो सकता । अतः प्रथम ज्ञान है और फिर दया अर्थात् चारित्र । इसी दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है कि अज्ञानी आत्मा संयम को अथवा असंयम को नहीं समझ सकता । पुण्यमार्ग को अथवा पापमार्ग को, कल्याण को अथवा अकल्याण को, सुनकर ही जाना जा सकता है। यहाँ पर भी प्राथमिकता श्रुतधर्म की ही प्रतिपादित की गई है। यही तथ्य आवश्यकनिर्युक्ति, बृहत्कल्पभाष्य तथा निशीथ चूर्णि आदि में कहा गया है। आज के जो अल्पज्ञ लोग हैं, उन्हें आचार की क्रान्ति करने के पूर्व श्रुत-धर्म को और ज्ञानाचार को समझ लेना परम आवश्यक है। विचार के अभाव में एकमात्र आचारक्रान्ति का अपने आप में कोई महत्त्व नहीं है, बल्कि उससे दंभ एवं अहंकार का ही पोषण होगा, शुद्धाचार का नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170