Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 162
________________ जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १६१ होते हुए भी कहीं-कहीं पर काफी बड़ा अन्तर भी है। आचार पर देश एवं काल का प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। याज्ञवल्क्य स्मृति वैदिक आचार ग्रन्थों में याज्ञवल्क्य स्मृति एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना गया है। इसके प्रणेता एक महर्षि, दार्शनिक एवं योगीश्वर थे। इसकी रचना मिथिला में हुई है। मिथिला मगध का एक सांस्कृतिक स्थल रहा है। वैदिक परम्परा और जैन परम्परा का मुख्य केन्द्र। याज्ञवल्क्यस्मृति धर्मशास्त्र प्रेणता महर्षि याज्ञवल्क्य की एक महनीय कृति है। वैदिक परम्परा के आचार ग्रन्थों की सम्पूर्ण पूर्व परम्परा इसमें समाहित हो चुकी है। आचार अथवा धर्म का कोई भी विषय ऐसा नहीं, जिसका समावेश इसमें न हो गया हो। प्रणेता ने अपने सम्पूर्ण स्मृति ग्रन्थ को तीन विभागों में विभाजित किया है और विषयानुरूप समुचित स्थान दिया है। याज्ञवल्क्य स्मृति में दो हजार सात सौ श्लोक हैं। मनुस्मृति का परिमाण बहुत अधिक है। विषय व्यवस्था भी इतनी सुन्दर नहीं है। याज्ञवल्क्य स्मृति में वेद, वेदांग, योग, अध्यात्म, दण्ड-नीति, धर्म और आचार की सुन्दर व्याख्या एवं व्यवस्था है। तीन अध्यायों में वह विभक्त है-आचार, व्यवहार और प्रायश्चित्त। आचार ग्रन्थों का इस प्रकार का विभाजन जैन आचार को व्यवस्थित एवं स्थिर करने वाले छेदसूत्रकार आचार्य भद्रबाहु ने किया था-आचार-दशा, कल्पसूत्र और व्यवहारसूत्र। बौद्ध आचार वैदिक आचार गृहस्थ के लिए है। उसमें संन्यास का महत्त्व उतना नहीं, जितना गृहस्थ का। वानप्रस्थ और संन्यास के नियम बहुत कम, बहुत संक्षेप में हैं। यतिधर्म संग्रह जैसे ग्रन्थ हैं अवश्य; परन्तु संन्यास एवं यति के आधार पर जैन एवं बौद्धों का प्रभाव स्पष्ट है। उनके नियम, उपनियम तथा उनकी जीवनचर्या, श्रमणों जैसी है। जैन और बौद्ध संन्यास-प्रधान धर्म रहे हैं। गृहस्थ के आचार एवं चर्या की दोनों में उपेक्षा रही है। क्योंकि दोनों श्रमण परम्पराओं में त्याग की प्रधानता रही है, भोग की नहीं। ब्राह्मण परम्परा में इससे विपरीत स्थिति है। बौद्ध परम्परा का मुख्य आचार ग्रन्थ है-विनयपिटक। इसमें भिक्षु एवं भिक्षुणी के आचार का कथन विस्तार से किया गया है। वस्त्र, पात्र, खान-पान और आने-जाने के नियम है। बौद्ध संघ में विनयधर भिक्षु का उतना बड़ा गौरव है, जितना बड़ा गौरव जैन संघ में आचारांगधर और प्रकल्पधर श्रमण का माना जाता है। विनयपिटक तीन विभागों में विभक्त है-विभंग, महावग्ग, और चुल्लवग्ग। विभंग दो भागों में विभक्त है-भिक्षुप्रातिमोक्ष और भिक्षुणी प्रातिमोक्ष। विभंग भिक्षु वर्ग की आचार संहिता एवं प्रायश्चित्त संहिता है। विनय को बुद्धशासन का मूल कहा गया है। भिक्षु प्रातिमोक्ष में परिपालनीय नियमों की संख्या दो सौ सत्ताईस है और भिक्षुणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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