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श्रावक की दिनचर्या १३५ १. अक्षुद्रता अर्थात् हृदय की उदारता २. स्वस्थता शरीर और मन की ३. सौम्यता-कटुता और कठोरता का अभाव ४. लोकप्रियता ५. अक्रूरता अर्थात् कोमल भाव ६. पाप-भीरुता ७. अशठता अर्थात् सरलता ८. दक्षता चतुरता ९. लज्जा-शीलता लज्जावान् १०. दया-शीलता दयावान् ११. गुणों का अनुराग १२. प्रिय संभाषण १३. मध्यस्थ भाव १४. दीर्घदर्शिता, विचार कर काम करना १५. सत्यभाषी या मधुरभाषी १६. विनम्रता विनयवान १७. विशेषज्ञता अवसर को जानने वाला १८. वृद्ध-सेवा भावी या अनुगामी १९. कृतज्ञता २०. परहितकारी या परोपकारी २१. लब्ध-लक्ष्य-लक्ष्य प्राप्त करने वाला
जैन आचार-शास्त्र मनुष्य जीवन के व्यवहार एवं नीति की उपेक्षा करके नहीं चलता। ये गुण व्यक्ति और समाज दोनों के लिए उपयोगी हैं। अध्यात्म साधना के मन्दिर में प्रवेश पाने के लिए भव्य प्रवेश द्वार भी कहे जा सकते हैं।
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