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जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १५१
पंच महाव्रत, पंच अणुव्रत, तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रत आदि आचार के वे पवित्र विधान हैं, जिनके पालन से मनुष्य का जीवन पावन व पवित्र बन सकता है। वैदिक परम्परा में पतंजलि के योग सूत्रों में पाँच यमों का वर्णन आता है। बौद्धों के यहाँ पर पंचशील का वर्णन आता है। इस प्रकार भारतीय परम्परा में महाव्रत, यम और शील धर्म के प्रतीक माने जाते हैं और इनमें उन समस्त नियमों का समावेश हो जाता है, जो मानव-जीवन के विकास एवं उत्थान के लिए आवश्यक हैं।
यद्यपि आज पाश्चात्य जगत में राजनीति, अर्थनीति और विज्ञान से धर्म अभिभूत हो चुका है, उसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व वहाँ विलुप्त हो चुका है अथवा अत्यन्त क्षीण अवस्था में चल रहा है, फिर भी यह कहा जा सकता है कि ईसा, मूसा और मोहम्मद ने जो कुछ कहा था, वह मानव-जीवन के विकास के लिए उपयोगी था। धर्म, दर्शन और तत्त्वइन तीनों की भी मानव-जीवन के विकास के लिए नितान्त आवश्यकता है और भविष्य में भी रहेगी। जो कुछ व्यक्ति के लिए श्रेयस्कर हो सकता है, वही समाज के लिए भी श्रेयस्कर होगा। इस प्रकार व्यक्ति और समाज दोनों के आचार एवं व्यवहार का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ता है।
पाश्चात्य आचारशास्त्र
आचारशास्त्र और अन्य विज्ञान
संसार के सभी पदार्थ एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं। अतः भिन्न विज्ञान भी, जिनमें उन विषयों का अध्ययन होता है, एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, पर कुछ विज्ञान ऐसे हैं, जिनमें बहुत ही घनिष्ठता रहती है और कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनमें वैसी घनिष्ठता नहीं रहती । यों तो आचारशास्त्र अर्थशास्त्र आदि से सम्बन्धित है, पर इसकी घनिष्ठता मनोविज्ञान, धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र से अधिक है।
आचारशास्त्र और मनोविज्ञान (Psychology)
आचारशास्त्र का सम्बन्ध आचार की उचितता और अनुचितता से है। यह मानव-आचरण के आदर्श की मीमांसा करता है। कौन-से आचरण को अच्छा या बुरा कहा जा सकता है, यही समस्या है आचारशास्त्र की । आचरण का स्वरूप जान लेने पर ही उसके आदर्श की मीमांसा हम कर सकते हैं। मानव आचरण की क्या विशेषताएँ हैं, यह जानकर ही उसका आदर्श निर्धारित किया जा सकता है। मानव आचरण का विश्लेषण, उसका स्वरूप और स्रोत आदि का अध्ययन मनोविज्ञान में होता है । अतः आचारशास्त्र और मनोविज्ञान में घनिष्ठ सम्बन्ध है । वास्तव में आचारशास्त्र का मनोवैज्ञानिक आधार जानना आवश्यक है। मानव - आचरण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किये बिना उसके आदर्शों की मीमांसा हम नहीं कर सकते। सिजविक ने कहा है कि 'प्रायः सभी नैतिक विचारों में मनोवैज्ञानिक तथ्य वर्तमान हैं।' किसी भी नैतिक मत का पालन क्यों न किया
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