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१४० अध्यात्म-प्रवचन समाधि की प्राप्ति हो सकती है। इसी में आत्मा का कल्याण है। तत्वामृत ग्रन्थ के श्लोक ५३ में कहा गया है, कि मिथ्यात्व, संसार का मूल कारण है, परम बीज है। मोक्ष की अभिलाषा करने वाले को मिथ्यात्व का त्याग कर देना चाहिए। अतः मिथ्यात्व को छोड़कर, अपनी आत्मा को निर्मल करना चाहिए। मिथ्यात्व का परित्याग कैसे किया जाए? उसके उपाय क्या हैं ? इसके विषय में कहा गया है, कि उसके चार उपाय हैं
१. शास्त्र का स्वाध्याय २. संयम का परिपालन ३. तप निर्जरा का कारण ४. अर्हन एवं सिद्ध की भक्ति
मिथ्यात्व का परित्याग ही शुद्ध सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए मिथ्यात्व का त्याग परम आवश्यक है। मिथ्यात्व रूप अन्धकार के नष्ट होते ही सम्यक्त्व का प्रकाश प्रकट हो जाता है। सम्यक्त्व के प्राप्त होते ही व्रतों की साधना प्रारम्भ हो जाती है।
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