Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 148
________________ जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १४७ कही थी कि सदाचार ही ज्ञान है। इस प्रकार सदाचार को ज्ञान कहकर सुकरात ने धर्म का गौरव बढ़ाया था। सुकरात का कहना था कि जिस व्यक्ति को सदाचार का ज्ञान न हो, वह सदाचार का पालन नहीं कर सकता। न्याय वही कर सकता है जिसे न्याय का ज्ञान हो। सुकरात ने यह भी कहा था कि नियम मनुष्य के लिए बनते हैं, मनुष्य नियम के लिए नहीं। सुकरात ने सत्य, न्याय और संयम के लिए खूब कहा था, और प्रचार भी खूब किया था। प्लेटो ने नीति के साथ राजनीति को भी जोड़ दिया और कहा कि समाज को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए जिस प्रकार नैतिकता की आवश्यकता है, उसी प्रकार राजनीति की भी आवश्यकता है। प्लेटो के विचारों के अनुसार नीति और राजनीति दोनों का प्रयोजन मानव-कल्याण है। नीति बताती है कि व्यक्ति भद्र की उत्पत्ति में अपने प्रयल से क्या कर सकता है ? राजनीति बताती है कि मनुष्यों का सामूहिक प्रयत्न क्या कर सकता है ? न्याय की परिभाषा करते हुए प्लेटो ने कहा था-न्याय दूसरों के साथ उचित और निष्कपट व्यवहार का नाम है। जो कुछ अपना है, उसे प्राप्त करना, यही न्याय है। सामाजिक जीवन का सार प्लेटो के विचार में व्यवस्था का स्थापन है। समाज नियम स्थापित करता है और माँग करता है कि नागरिक उन नियमों पर चलें। प्लेटो कहा करता था कि अच्छा व्यक्ति अच्छे राष्ट्र का अच्छा नागरिक है। इस प्रकार प्लेटो ने सदाचार, नीति और आचार के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा था। प्लेटो के समान अरस्तू का भी यही विचार था कि समाज और राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए नीति और राजनीति दोनों की आवश्यकता है। अरस्तू का कहना है कि शक्ति और सदाचार में मित्रता नहीं हो सकती। व्यवहार की दृष्टि से अरस्तू किसी एक के स्थान में कुछ भले पुरुषों के हाथों में शक्ति देने के पक्ष में था। उसका यह भी विश्वास था कि राष्ट्र में किसी वर्ग का बहुत धनवान होना अथवा बहुत दरिद्र होना राज्य के लिए हानिकारक होता है। मध्यम वर्ग राष्ट्र में रीढ़ की हड्डी के समान होता है। अरस्तू कहता था-प्रेम स्त्री और पुरुष को दो से एक बनाता है, प्रेम परिवार को जन्म देता है, सन्तान इसे स्थायी बनाती है। अरस्तू ने अपने नीतिशास्त्र में कहा है कि धन का व्यय करने में कंजूस एक सीमा पर जाता है और अपव्ययी दूसरी सीमा पर जा पहुँचता है। उदार-पुरुष मध्यम मार्ग चुनता है। दूसरों को धन की सहायता देना सुगम है, परन्तु उचित मनुष्य को, उचित समय पर, उचित मात्रा में और उचित ढंग से सहायता देना बहुत कठिन है। अरस्तु ज्ञान के साथ क्रिया को भी महत्त्व देता है। उसके विचार में अभ्यास का फल सदाचार है। जैसे गाते-गाते ही मनुष्य गायक बन जाता है, वैसे ही अच्छा आचार भले कर्मों के लगातार करते रहने से ही बनता है। हम देखते हैं, कि यूनानी दार्शनिकों के विचार, जो धर्म और नीति के सम्बन्ध में उन्होंने लिखे हैं, उनमें उन सभी बातों का समावेश हो जाता है जो जीवन को सुन्दर और मधुर बनाने के लिए आवश्यक हैं। धर्म के सभी अंग इन विचारों में आ जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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