________________
१४६ अध्यात्म-प्रवचन में बदली। समाज के निर्माण के साथ ही आचार और धर्म का भी आविर्भाव सहज ही हो जाता है। जिस समाज के आचार और धर्म के नियम जितने अधिक व्यापक और उदार होते हैं, वह समाज उतना ही अधिक समुन्नत समझा जाता है। आचार और धर्म के बाद ही दर्शन और तत्त्व का विकास होता है। समाज को स्थिर, सम्पन्न और समृद्ध बनाने के लिए निश्चय ही आचार और धर्म की जीवन विकास के लिए नितान्त आवश्यकता है। इस विश्व में एक भी समाज इस प्रकार का नहीं होगा, जिसमें आचार और धर्म के नियमों का विधान नहीं होगा। भारतीय आचार ___ जैन परम्परा के विश्वास के अनुसार उसके धर्म और आचार के नियमों का निर्माण प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने किया। उसी परम्परा का कुछ परिवर्तनों के साथ अथवा अपने युग की भावना के अनुसार भगवान नेमिनाथ ने और महाश्रमण भगवान महावीर ने अपने-अपने तीर्थ में आचार और धर्म के नियमों का विधान किया था। तथागत बुद्ध ने बौद्ध परम्परा के अनुसार नियमों की रचना की। वैदिक परम्परा में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने भी उस युग की जनता के लिए नैतिक नियमों का विधान किया। भारतीय आचार और धर्म को सुदृढ़ बनाने वाले मूल रूप में ये ही महापुरुष हैं। फिर श्रुति, स्मृति और कल्प आदि ग्रन्थों में तथा पिटक और आगम आदि वाङ्मय में उन्हीं का पल्लवन, विस्तार, संकोच और विकास होता रहा है। नियमहीन अथवा आचारहीन मानव को भारतीय साहित्य में पशु के समान माना गया है। अतः जीवन विकास के लिए आचार आवश्यक है। पाश्चात्य आचार
__ पाश्चात्य आचार और धर्म की नींव डालने वाले में ईसा, मूसा और मोहम्मद मुख्य हैं। बाइबिल और कुरान में दर्शन और तत्त्व का प्रतिपादन नहीं किया गया। बल्कि मानव-जीवन के विकास के लिए जिन नियमों की आवश्यकता थी, उन्हीं का प्रतिपादन किया गया है। ईसा ने चार बातों का उपदेश दिया था-प्रेम, सेवा, दान और उदारता। मोहम्मद ने भी कहा था-तुम सबसे प्रेम करो, आपस में प्रेम से रहो, रोजा और नमाज भी नियमित रूप से करो। पाश्चात्य विचारकों पर बाइबिल और कुरान के विचारों का ही अधिक प्रभाव पड़ा है। यूनानी आचार __ यूनान के दार्शनिकों में प्रसिद्ध विचारक सुकरात था। उसका शिष्य प्लेटो था और प्लेटो का शिष्य अरस्तू था। तीनों ने ही नीति और आचार पर विशेष बल दिया था। सुकरात के विचार में नीति अथवा धर्म का स्थान सर्वोच्च था। भद्र क्या है और अभद्र क्या है ? इसकी नींव सुकरात ने बुद्धि पर रखी। सुकरात ने कहा कि जो भद्र है, वह सभी के लिए भद्र है और जो अभद्र है.वह सभी के लिए अभद्र है। सुकरात ने सबसे बड़ी बात यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org