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११० अध्यात्म-प्रवचन ____ आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने अपने योग शास्त्र में कहा है, कि इस व्रत की सीमा में भोग्य योग्य समस्त वस्तुओं का समावेश हो जाता है। खाने-पीने की वस्तु, रहने-सहने की वस्तु, पहनने ओढ़ने की वस्तु। सचित्त वस्तु और अचित्त वस्तु-सब इसके अर्न्तगत हैं। अतः शास्त्रकारों ने छब्बीस बोल की मर्यादा का कथन किया है१.अंगोछा
१४. ओदन २.मञ्जन
१५. सूप-दाल ३. फल
१६.घृत ४. तेल
१७. शाक ५. उबटन
१८. मेवा ६.स्नान जल
१९. जेमन-भोजन ७. वस्त्र
२०.पेय जल ८.विलेपन
२१. मुखवास ९. फूल
२२. वाहन १०. आभरण
२३. उपानत्, जूता ११. धूप-दीप
२४. शय्या आसन १२. पेय पदार्थ
२५. सचित्त वस्तु १३. मिष्ठान
२६.खाद्य पदार्थ श्रावक को इन छब्बीस वस्तुओं की निश्चित मर्यादा कर लेनी चाहिए। क्योंकि मर्यादा करने से उसके जीवन में शान्ति तथा सन्तोष रहेगा। विवेक जागृत होगा। इस व्रत के पाँच अतिचार होते हैं, जिनका परित्याग कर देना चाहिएउपभोग-परिभोग परिमाण व्रत के अतिचारः
(क) सचित्त आहार (ख) सचित्त प्रतिबद्ध आहार (ग) अपक्व आहार (घ) दुष्पक्व आहार (ङ) तुच्छ औषधि-भक्षण
ये पाँच अतिचार भोजन से संबद्ध हैं। जो सचित्त वस्तु मर्यादा के अन्दर नहीं है, उसका भूल से सेवन करने पर प्रथम अतिचार होता है। त्यक्त सचित्त वस्तु से संसक्त, अचित्त वस्तु का आहार करने पर सचित्त प्रतिबद्ध अतिचार होता है। जैसे वृक्ष में चिपका गोंद, आम्रफल गुठली सहित और पिण्ड खजूर । सचित्त वस्तु का त्याग करने पर बिना अग्नि के पके आहार का सेवन करना, अतिचार है। जिसका नाम अपक्वाहार है। अथवा
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