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५. श्रावक की दिनचर्या
आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने स्व-प्रणीत योग-शास्त्र में, जैन दृष्टि से योग का सुन्दर वर्णन किया है। पतञ्जलि ने अपने योग सूत्रों में, योग का विस्तार से प्रतिपादन किया था। वह वैदिक दृष्टि से किया गया था। बौद्ध परम्परा के आचार्य बुद्धघोष ने बौद्ध दृष्टि से स्व-रचित विशुद्धि मार्ग ग्रन्थ में योग का वर्णन किया था। आचार्य हेमचन्द्र ने जैन आचार को योग की परिभाषा में रूपान्तर करके प्रस्तुत किया था। तीनों ने अपनी-अपनी परम्परा आचार को योग रूप में ढाल कर प्रस्तुत किया था । सर्व प्रथम यह कार्य पतञ्जलि ने किया था। उसका अनुसरण बौद्ध तथा जैनों ने किया था।
आचार्य हेमचन्द्र ने समग्र जैन आचार - शास्त्र को योग रूप में परिवर्तित करके महान् उपकार किया था। उनके योग- शास्त्र में श्रमणाचार और श्रावकाचार के समस्त तत्वों का समावेश हो गया है। श्रमण का संक्षेप में, श्रावक का विस्तार में वर्णन किया है। श्रावक के मूल गुण एवं उत्तर गुणों का कथन करने के बाद में श्रावक की दिनचर्या का सुन्दर प्रतिपादन किया है । दिनचर्या के तीन विभाग हैं- प्रभात काल, मध्य काल तथा सन्ध्या काल | किस समय क्या करणीय है ?
प्रातःकाल क्या करें? :
१. प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व ही शय्या का परित्याग कर दे। ब्राह्म मुहूर्त का अर्थ है, कि रात्रि के पञ्च दश मुहूर्त होते हैं, उनमें से चतुर्दशम् मुहूर्त को ब्राह्म कहा गया है। यह काल सूर्योदय से दो घड़ी पूर्व का माना गया है। यह सर्व श्रेष्ठ समय होता है।
२. शय्या पर बैठकर ही पञ्च परमेष्ठी का स्मरण करे। परमेष्ठी में पाँच तत्व हैंअर्हन्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु । इन्हें पाँच पद भी कहते हैं । महामन्त्र भी कहते हैं | नमस्कार मन्त्र, नवकार मन्त्र, परमेष्ठी मन्त्र और महामन्त्र - ये सब इसके नाम हैं। पाँच बार अथवा सात बार इसका स्मरण करे ।
३. फिर शय्या से उठकर माता-पिता के चरण स्पर्श कर प्रणाम करे। गुरु-जनों को नमस्कार करे । समवयस्क जनों को 'नमो जिणाणं' कहे, जय जिनेन्द्र कहे। बाल-बच्चों को प्यार करे, प्रेम करे ।
४. अपना नित्य कर्म करे । शुद्ध वस्त्र पहने । फिर तीन मनोरथों का चिन्तन करे, मनन करे
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