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११६ अध्यात्म-प्रवचन
(घ) सामायिक की स्मृति न रखना। सामायिक की अथवा नहीं की। कब ग्रहण की थी। समय की विस्मृति हो जाना। सामायिक का काल पूरा किया या नहीं किया। इसको स्मृति अकरण कहते हैं।
(ङ) सामायिक की जो विधि है, उसके अनुसार सामायिक न करना।सामायिक रोज न करना। कभी कर लेना, कभी न करना। इसको अनवस्थित करण अतिचार कहा गया
सामायिक व्रत की महिमाः
आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने योग-शास्त्र में कहा है कि जिस व्यक्ति ने अपने मानसिक धरातल पर उठने वाले अपध्यान अथवा अशुभ ध्यान के तूफान को शान्त, प्रशान्त और उपशान्त कर दिया है, और जिसने समस्त पाप पूर्ण व्यापारों का परित्याग कर दिया है, जिसके अन्तर चित्त में, मुहूर्त भर के लिए समभाव का उदय हुआ हो, वही साधक सामायिक व्रत का आराधक माना जाता है।
जिस साधक ने निश्चय से अपनी आत्मा के स्वरूप को समझ लिया है, और जिसने अपनी विवेक शक्ति से नीर-क्षीर की भाँति परस्पर संबद्ध जीव और कर्म का पृथक्करण कर लिया है, वही व्यक्ति सामायिक व्रत का अधिकारी माना गया है। कर्म और जीव को अलग-अलग करना ही वस्तुतः सामायिक व्रत की सच्ची साधना होती है।
समभाव रूप सूर्य की प्रभा से रागद्वेष रूप अन्धकार का विनाश हो जाने पर, योगीजन जब अपनी आत्मा के स्वरूप को अपने में ही देखता है, अपने द्वारा, तब उनकी साधना, सामायिक व्रत कही जा सकती है। भोगी बाहर में देखता है, योगी अपने अन्दर में देखता है, और रोगी शरीर भर की चिन्ता करता है।
श्रावक का देशावकाश व्रत श्रावक के चार शिक्षा-व्रतों में से यह द्वितीय शिक्षाव्रत है। देश और अवकाश-इन दो पदों के मेल से बना देशावकाश। फिर बन गया देशावकाशिक। देश का अर्थ है-अंश। अवकाश का अर्थ है-छुट्टी। जिस साधना में, अंश रूप में छुटकारा मिलता हो, उसे देशावकाश कहते हैं। दिशा परिमाण व्रत में, और देशावकाश व्रत में, परस्पर सम्बन्ध है। दिशा परिमाण और देशावकाश में एक भेद तो यह है, कि दिशा परिमाण, तीन गुणव्रतों में से एक गुणव्रत है। देशावकाश व्रत, चार शिक्षा-व्रतों में से एक शिक्षाव्रत है। दूसरा भेद यह है, कि दिशाव्रत जीवन भर के लिए, जीवन में एक बार ग्रहण किया जाता है। देशावकाश व्रत, दिशा परिमाण की मर्यादा का संक्षेप करता है। यह संक्षेप प्रतिदिन करना होता है। रात्रि में भी कर सकते हैं। दिवस में भी कर सकते हैं। अल्प काल के लिए भी कर सकते हैं। अधिक समय के लिए भी कर सकते हैं। पर पूरे जीवन के लिए नहीं होता। देश शब्द की यही व्याख्या की जाती है।
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