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९० अध्यात्म-प्रवचन अर्थ-विज्ञान द्वारा ही हो सकता है। देश-भेद और काल-भेद से एक ही शब्द के अर्थ में होने वाले परिवर्तन को ठीक से समझने के लिए अर्थ-विज्ञान का अध्ययन परम आवश्यक है। भाषा के तीन प्रमुख अंग हैं-ध्वनि, रूप और अर्थ। इन सभी में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। ध्वनि-विकार, रूप विकार और अर्थ विकार भाषा परिवर्तन के रूप हैं। अर्थ परिवर्तन के सिद्धान्त : __ अर्थ परिवर्तन के तीन सिद्धान्त हैं-अर्थ विस्तार, अर्थ संकोच और अर्थादेश। अर्थ विकास के मूल में लक्षणा वृत्ति काम करती है। शब्द के मुख्य अर्थ में जब भी कोई परिवर्तन होगा, वह लक्षणा के कारण ही, जब तक लक्षणा का आधार नहीं मिलता, तब तक परिवर्तन नहीं हो सकता। व्यञ्जना से भी विस्तार होता है। एक शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं। अर्थ-विस्तार :
शब्दों के अर्थ का विस्तार होता है। उनका मौलिक अर्थ बना रहता है, और उसका विस्तार हो जाता है। जैसे कि तेल शब्द है। इसका सम्बन्ध तिल से है। तिल से निकले रस को मूलतः तेल कहते हैं। यह तेल शब्द धीरे-धीरे विस्तार पाता रहा। सरसों, अलसी, जैतून और मूंगफली-इनके रस को भी तेल कहा जाने लगा। मिट्टी के रस को भी तेल कहा जाने लगा। इस प्रकार विशिष्ट अर्थ में, सामान्य अर्थ की स्थापना का अर्थ-विस्तार हो गया है। अर्थ-संकोच :
अर्थ-संकोच का अभिप्राय है, शब्द का दुबला हो जाना। भाषा के विकास में अर्थ-संकोच का बहुत ही महत्व-पूर्ण स्थान है। अर्थ-संकोच के कारण किसी शब्द का प्रयोग सामान्य या विस्तृत अर्थ से हटकर विशिष्ट अथवा सीमित अर्थ में होने लगता है। जैसे कि गो शब्द गम् धातु से संबद्ध होने के कारण गमन करने वाले के सामान्य अर्थ में प्रयुक्त होता था, किन्तु अब उसका प्रयोग केवल गाय के लिए ही होता है। यह अर्थ-संकोच का एक उदाहरण है। अन्य शब्द भी इस प्रकार के हो सकते हैं। जैसे कि वर शब्द है, जिसका अर्थ है, जो मांगा जाए। लेकिन आज इसका प्रयोग दूल्हा, अर्थ में होता है। अर्थादेश का अर्थान्तर :
इसमें अर्थ का विस्तार एवं संकोच न होकर, बिल्कुल परिवर्तन हो जाता है। एक शब्द पहले किसी दूसरी वस्तु का वाचक होता है, और बाद में दूसरी वस्तु का वाचक बन जाता है। वेद में असुर शब्द देवता वाचक था, बाद में दैत्य का वाचक बन गया। आकाश-वाणी का अर्थ पहले देव-वाणी था, अब रेडियो केन्द्र हो गया है। उपवास शब्द का मौलिक अर्थ यजमान का अग्नि के पास रहना होता था, अब नया अर्थ अनशन एवं अनाहार हो गया। उपेक्षा शब्द का अर्थ मौलिक रूप में, पास से देखना था, और नया अर्थ उदासीनता हो गया है। इस प्रकार से अर्थादेश के अन्य हजारों उदाहरण हो सकते हैं। .
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