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आचार मीमांसा १०१ साधु सूक्ष्म असत्य भी कभी नहीं बोलता। उपासक स्थूल असत्य परिस्थितिवश बोल जाता है। अथवा तो उसे बोलने के लिए बाध्य होना पड़ता है। मृषा का अर्थ है-मिथ्या एवं असत्य। वाद का अर्थ है-कथन करना, बोलना। श्रावक स्थूल मिथ्या भाषण से विरत होता है, सूक्ष्म से नहीं हो पाता। असत्य वचन न बोलना, मृषावाद विरमण व्रत का निषेधात्मक पक्ष है, और सत्य वचन बोलना, इस व्रत का विधेयात्मक पक्ष है। इस सत्य व्रत के पालन से बोलने वाले को लोक में पूज्यता प्राप्त होती है। विश्वास उत्पन्न होता है। सत्यनिष्ठा जागृत होती है। वचन-सिद्धि की प्राप्ति होती है। वह व्यक्ति लोक में वचन-सिद्ध कहा जाता है। उसकी बात पर सब लोग कान बन्द कर विश्वास करते हैं।
अहिंसा की आराधना के लिए सत्य की साधना, परम आवश्यक है। झूठा मनुष्य सही अर्थ में, अहिंसक नहीं हो सकता। सच्चा अहिंसक कभी असत्य आचरण नहीं कर सकता। अहिंसा और सत्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के अभाव में रह नहीं सकते। जीवित रहने के लिए मनुष्य हिंसा का पूर्णतया त्याग नहीं कर सकता। खान-पान में और रहन-सहन में होने वाली सूक्ष्म हिंसा को मनुष्य दूर नहीं कर सकता। असत्य के विषय में, यह नहीं कहा जा सकता। मनुष्य असत्य को पूर्ण रूप से नहीं तो स्थूल रूप में तो छोड़ सकता है। श्रावक के लिए साधारणतया मृषावाद का सर्वथा त्याग अर्थात् सूक्ष्म असत्य का परित्याग शक्य नहीं होता। वह स्थूल मृषावाद का त्याग अवश्य कर सकता है। __ स्थूल झूठ का त्याग भी सामान्यतया स्थूल हिंसा के त्याग के ही समान दो करण व तीन योग पूर्वक होता है। स्थूल झूठ किस को कहते हैं ? जिस असत्य से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, मित्रों में प्रामाणिकता न रहे, जन-जीवन में प्रतीति न रहे और समाज की दृष्टि में गिरना पड़े तथा राज-दण्ड भी कभी भोगना पड़े, उसे स्थूल असत्य एवं मोटी झूठ कहा जाता है। अनेक कारणों से मनुष्य स्थूल असत्य का प्रयोग करता है, जैसे कि
१. वर-कन्या के सम्बन्ध में असत्य वचन का प्रयोग करना।
२. गाय, भैंस एवं घोड़ा आदि पशु के सम्बन्ध में, उसके क्रय-विक्रय के लिए असत्य भाषण का प्रयोग करना।
३. भूमि अथवा अन्य किसी वस्तु के स्वामित्व भाव के सम्बन्ध में असत्य कथन करना। झूठी जानकारी देना।
४. किसी की धरोहर को हड़पने के लिए असत्य वाणी बोलना। लेकर मुकर जाना।
५. कोर्ट-कचहरी में, झूठी गवाही देना। झूठे बयान देना। असत्य बोलना। किसी के साथ विश्वासघात करना। रिश्वत खाना और दूसरों को खिलाना। श्रावक के इस प्रकार का झूठ बोलने-बुलवाने का मन, वचन और काय से त्याग होता है।
स्थूल मृषावाद विरमण के पाँच अतिचार होते हैं, जिनका श्रावक सेवन नहीं करता(क) सहसा अभ्याख्यान (ख) रहसि अभ्याख्यान
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