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॥ ||७. संसार-मुक्ति
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यह संसार क्या वस्तु है ? क्या इस संसार का कभी विनाश हो सकता है ? जीवन के साथ जगत का और जगत के साथ जीवन का क्या सम्बन्ध है ? इस प्रकार के प्रश्न दर्शन-शास्त्र में चिरकाल से उठते रहे हैं और उनका समय-समय पर समाधान भी किया जाता रहा है। मुख्य प्रश्न यह है,कि इस संसार का स्वरूप क्या है? और इसका विनाश अथवा अभाव कैसे हो सकता है ? शास्त्रों में कहा गया है, कि जब आत्मज्ञान प्रकट हो जाता है, तब संसार नहीं रहता। संसार समाप्त हो जाता है, फिर उसकी स्थिति नहीं रहती। कहा गया है कि-'ज्ञाते तत्वे कः संसारः?' तत्व का परिज्ञान हो जाने पर फिर यह संसार नहीं रह पाता।
मेरे कहने का अभिप्राय यह है, कि तत्व ज्ञान हो जाने पर संसार क्यों नहीं रहता? यदि संसार सत्यभूत है और वास्तविक है, तो फिर उसकी सत्ता से इनकार कैसे किया जा सकता है ? जो सत् है वह कभी असत् नहीं हो सकता है। और जो असत् है, वह कभी सत् नहीं हो सकता। यदि संसार सत् है, तो तत्वज्ञान के प्रकट होने पर भी वह रहेगा ही, उसका विलोप और विनाश नहीं हो सकता। फिर भी यहाँ पर तत्वज्ञान से संसार का जो विनाश बतलाया है, उसका एक विशेष उद्देश्य है। विशेष उद्देश्य यही है, कि तत्वज्ञान प्रकट हो जाने पर बाहर में संसार की सत्ता तो रहती है, परन्तु अन्दर में साधक के मन में संसार की आसक्ति नहीं रहती, फलतः संसार नहीं रहता। संसार की सत्ता रहे, पर आसक्ति न रहे तो साधक जीवन की यह एक बहुत बड़ी सिद्धि है। जैन दर्शन में इसी को वीतराग अवस्था कहा गया है। गीता में इसी की स्थितप्रज्ञ दशा कहा गया है। जीवन में इस प्रकार की स्थिति और इस प्रकार की अवस्था का आना ही साधना की सफलता है।
जब यह कहा जाता है, कि आत्मा की शुद्ध वस्तुस्थिति का पता चल जाने पर तथा स्व-पर का भेदज्ञानरूप तत्वज्ञान प्रकट हो जाने पर संसार नहीं रहता, तब प्रश्न उठता है, कि संसार नष्ट होने का क्या अर्थ है ? ज्ञान होने पर शरीर रहता ही है। इन्द्रियाँ भी रहती हैं और मन भी रहता है। मन में विचार भी उठते रहते हैं, कभी सुख और कभी दुःख की स्थिति भी आती और जाती रहती है।
जैन दर्शन कहता है कि जब तक कर्म हैं और जब तक कर्म का उदयभाव है, तब तक सुख और दुःख, हानि और लाभ, जीवन और मरण, शान्ति और अशान्ति-ये सब द्वन्द्व चलते ही रहेंगे। शरीर के सुख एवं दुःख के भोग भी मिटेंगे नहीं। इन्द्रियाँ भी अपने-अपने विषयों को ग्रहण करती रहेंगी। फिर संसार क्या मिटा और कैसे मिटा? तत्वज्ञान होने पर
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