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९. नय और निक्षेप
९. नय और निक्षेप
जैन तर्क-शास्त्र में, प्रमाण, नय और निक्षेप का विस्तृत वर्णन किया गया है। प्रमाण का प्रतिपादन तो अन्यत्र भी उपलब्ध हो सकता है, किन्तु नय और निक्षेप का वर्णन तो जैसे दर्शन की अपनी मौलिक देन है। बौद्ध दर्शन में नय शब्द का उल्लेख भर तो मिलता है, पर उसका विशेष स्पष्टीकरण अथवा व्याख्या नहीं की गई। वैदिक दर्शनों में नय शब्द से तो नहीं, लेकिन भाव से, अभिप्राय से नयों जैसा वर्णन मिल सकता है।
वेदान्त सम्प्रदायों में, एक ही ब्रह्म-सूत्र को लेकर ८-१0 व्याख्याएँ की हैं। जैसे कि अद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत और विशिष्टाद्वैत आदि। यह क्या है? यह भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। एक ही ब्रह्मतत्व को किसी ने अद्वैत कहा, किसी ने द्वैत माना और किसी ने द्वैत एवं अद्वैत कहा। यह अपेक्षाभेद ही तो नय हो जाता है। लेकिन यह अपेक्षा भेद किसी के द्वारा भी विकसित नहीं हो सका। एकान्त दृष्टि होने से अनेकान्त नहीं बन सका। जहाँ अनेकान्त होता है, वहीं पर नय की आवश्यकता होती है। वैसा कुछ भी वैदिक सम्प्रदायों में नहीं हो सका। बीज था, लेकिन उसका विकास नहीं। जैन दर्शन में वह बीज अपने पूर्ण विकास पर जा पहुँचा। अतः प्रत्येक जैन दार्शनिक के लिए नयों की व्याख्या अनिवार्य थी।
निक्षेप के सम्बन्ध में बात कुछ भिन्न है। निक्षेप का प्रयोग जैन दर्शन की अपेक्षा, जैन आगमों में बहुलता से हुआ है। इसकी विशेष व्याख्या, आगमों की अपेक्षा भी उनके व्याख्या-ग्रन्थ-नियुक्ति तथा भाष्यों में की है। निक्षेप तर्क-शास्त्र का विषय न था, परन्तु उपाध्याय यशोविजय ने इसे तर्क-शास्त्र में,सम्मानपूर्ण स्थान दिया था। अपने ग्रन्थ जैनतर्क-भाषा में तो उसे प्रमाण और नय की भाँति ही आवश्यक माना गया है। अकलंक देव ने भी अपने ग्रन्थ लघीयस्त्रय में तीन विभाग रखे हैं-प्रमाण, नय और निक्षेप।अतः निक्षेप तर्क-युग में प्रवेश पा चुका था। वस्तु-तत्व का विवेचन करने के लिए निक्षेप का प्रयोग आवश्यक होता है। नय की भाँति निक्षेप भी जैन दर्शन की अपनी एक विशिष्ट देन ही है, जो अन्यत्र नहीं है, और यदि है, तो स्पष्ट नहीं है। निक्षेप नाम से भी नहीं है। लेकिन अन्य दर्शनों में, इसकी स्थिति से इन्कार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि जहाँ शब्द और अर्थ पर, उसके संबन्ध पर विचार होगा, वहाँ निक्षेप होगा ही।
शब्द का अर्थ करने पर निक्षेप की आवश्यकता होती है। शब्द वाचक है, और अर्थ वाच्य है। बिना संबन्ध के शब्द अपना अर्थ कैसे व्यक्त कर सकता है ? किस प्रसंग पर किस शब्द का क्या अर्थ लेना, यह निक्षेप का कार्य-क्षेत्र है। इसके सम्बन्ध में, व्याकरणकार, साहित्यकार और दार्शनिक तथा नैयायिकों ने अपने-अपने ढंग से विचार
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