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भाषा-विज्ञान और व्याकरण ८५ किया है। वैयाकरणों का स्फोट, साहित्यिकों की वृत्ति अथवा शब्द शक्ति, बौद्धों का अपोह, मीमांसकों की जाति, नैयायिकों का कित ग्रह-ये सब निक्षेप के ही विभिन्न रूप रहे हैं।
शब्द विज्ञान पाश्चात्य दर्शन में शब्द और अर्थ पर विचार किया गया है। पाश्चात्य दर्शन का यह एक नूतन विचार है, जो शब्द-विज्ञान के नाम पर प्रचार एवं प्रसार पा रहा है। यह शब्द विज्ञान क्या वस्तु है? इसके उत्तर में, यही कहा जा सकता है, कि वाचक और वाच्य के सम्बन्ध की व्याख्या करने की एक पद्धति।
शब्द-विज्ञान (Sementics) जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, शब्दों के अर्थ और जिन वस्तुओं को वे इंगित करते हैं उनसे उनके संबन्ध पर विचार करता है। दूसरे शब्दों में, यह भाषा के अर्थ का विज्ञान है। इसमें,भाषा में पाए जाने वाले विभिन्न शब्दों,प्रतीकों, चिन्ह तथा संकेतों आदि के कार्य का विश्लेषण किया जाता है, और उनके अर्थ निश्चित किए जाते हैं। अतः प्रमाण-शास्त्र और तर्क-शास्त्र के समान, शब्द-विज्ञान भी किसी भी प्रकार की ज्ञान-साधना में, अत्यन्त आवश्यक है। समकालीन पाश्चात्य दार्शनिक सम्प्रदायों में तार्किक-भाववाद (Logical Positism) नामक सम्प्रदाय के दार्शनिकों ने शब्द विज्ञान की समस्याओं को दर्शन की मुख्य समस्याएँ माना है। (LogicalPositism) शब्द-विज्ञान (Sementics) समकालीन दार्शनिक सम्प्रदाय तार्किक भाववाद (Logical-Positism) के अनुसार दर्शन की सबसे अधिक मुख्य शाखा शब्द-विज्ञान है। इसमें जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है, विभिन्न शब्दों के अर्थों का विवेचन किया जाता है। विज्ञान का अर्थ होता है, किसी विषय का विशेष ज्ञान। शब्द-विज्ञान, शब्दों का विशेष परिज्ञान कराने वाला शास्त्र है।
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