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८२ अध्यात्म-प्रवचन
अन्य भूतों से जो भिन्न नहीं है, उसमें रूप नहीं है। अग्नि में रूप है। अतः अग्नि अन्य भूतों से भिन्न है।
इसमें, पहले वाक्य में, साध्य के अभाव के साथ साधन के अभाव की व्याप्ति स्पष्ट है। साधन रूप को पक्ष अग्नि के अतिरिक्त और कहीं देखना संभव नहीं है।
३. अन्वय-व्यतिरेकि अनुमान-इसमें, साधन और साध्य का सम्बन्ध अन्वय तथा व्यतिरेक, दोनों के द्वारा स्थापित किया जाता है। जैसे कि
जहाँ धूम है, वहाँ अग्नि है, पर्वत में धूम है, अतः पर्वत में अग्नि है। जहाँ अग्नि नहीं है, वहाँ धूम नहीं है, पर्वत में धूम है,
अतः पर्वत में अग्नि है। अनुमान का लक्षण :
अनुमान का लक्षण इस प्रकार है-तृतीय लिंग परामर्शः अनुमानम्। इस अनुमान में, तीन बार लिंग का दर्शन होता है। पहली बार धूम चूल्हे में नजर पड़ा, दूसरी बार पर्वत में
और तीसरी बार पर्वत में अग्नि से व्याप्त धूम नजर पड़ा। पञ्चावयव अनुमान को हम परम न्याय कहते हैं। पाश्चात्य अनुमान से तुलना :
भारतीय तथा पाश्चात्य अनुमान में विशेष अन्तर नहीं है, केवल वाक्य विन्यास में अन्तर है। वाक्यों के क्रम में अन्तर है। न्याय-शास्त्र और तर्क-शास्त्र में भी नाम का ही अन्तर है, परिणाम का अन्तर नहीं है। पाश्चात्य दर्शन में, तर्क-शास्त्र का प्रारम्भ अरस्तू से होता है। मनुष्य सदा वर्तमान तथ्यों के आधार पर अज्ञात तथ्यों का अनुमान करता है। अनुमान की यह स्वाभाविक विशेषता सबसे बड़ी शक्ति है। इसके ही कारण मनुष्य का व्यावहारिक जीवन सरल एवं सफल है। एक किसान को जैसे ही मेघ का प्रत्यक्ष होता है, वैसे ही वह वर्षा का अनुमान करके अपने खलिहान को समेटने लगता है। वर्षा के अभाव में अकाल का अनुमान करके, अपने संचित अन्न को नहीं बेचता है। अतएव यह अनुमान मनुष्य के जीवन का संबल है। अनुमान, भाषा में व्यक्त ज्ञाता की वह मानसिक क्रिया है, जिसमें वह ज्ञात तथ्यों अथवा तार्किक वाक्यों के आधार पर अनिवार्य रूप से अज्ञात तथ्यों अथवा तार्किक वाक्यों की ओर प्रस्थान करता है। ज्ञात से अज्ञात को जानता है। ज्ञान वाक्यों को आधार वाक्य (Premises)एवं उनसे अनिवार्य रूप में मिले हुए वाक्य को निष्कर्ष वाक्य (Conclusion) कहा जा सकता है।
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