________________
ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय ५९ पदार्थों का ज्ञाप्य ज्ञापक-भाव सम्बन्ध भी हो सकता है। ज्ञान-ज्ञापक है और पदार्थ ज्ञाप्य हैं। कुछ आचार्यों ने ज्ञान के साथ पदार्थों का बोध्य-बोधक भाव सम्बन्ध भी बतलाया है। ज्ञान बोधक है और पदार्थ बोध्य हैं।
परन्तु सबसे बड़ा प्रश्न यह है, कि ज्ञान का ज्ञान के साथ क्या सम्बन्ध है ? इस प्रश्न के उत्तर में दो विचार-धाराएँ सामने आती हैं-एक विचार-धारा वह है, जो ज्ञान को केवल पर-प्रकाशक ही मानती है। और दूसरी विचार-धारा वह है जो ज्ञान को स्व-परप्रकाशक मानती है। दूसरी विचार-धारा के अनुसार ज्ञान के साथ तीनों प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है-विषय-विषयी भाव सम्बन्ध, ज्ञाप्य ज्ञापक-भाव सम्बन्ध और बोध्य-बोधकभाव सम्बन्ध। जब ज्ञान स्वयं को जानता है, तब वह स्वयं ही विषयी है और स्वयं ही अपना विषय है, तब वह स्वयं ही ज्ञापक है और स्वयं ही ज्ञाप्य है, तब वह स्वयं ही बोधक है और स्वयं ही बोध्य है। __"मैं अपने आपको आपसे जानता हूँ।" इस वाक्य में जानने वाला और जिसको जाना जाता है, वे दोनों एक हैं, और जिससे जानता है, वह भी भिन्न नहीं है। इस उदाहरण में हम देखते हैं, कि यहाँ पर ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय तीनों एक हो गए हैं। अब तक के विवेचन पर से स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञान का पदार्थों के साथ ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्ध है। इसी प्रकार जैन दर्शन के अनुसार ज्ञान का ज्ञान के साथ भी ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्ध है।
संसार में प्रत्येक पदार्थ, फिर भले ही वह चेतन हो अथवा जड़ हो, ज्ञान का विषय होने से ज्ञेय होता है। ज्ञान का विषय शुभ एवं सुन्दर पदार्थ भी हो सकता है तथा अशुभ एवं असुन्दर पदार्थ भी हो सकता है। इस प्रकार ज्ञेय पदार्थ शुभ और अशुभ, सुन्दर और असुन्दर सभी हो सकते हैं। वृक्ष की टहनी में खिलने वाला फूल भी ज्ञेय है और उसी वृक्ष की टहनी में जन्म लेने वाला काँटा भी ज्ञेय रूप में प्रतिभासित और प्रतिबिम्बित होता है। मनुष्य के ज्ञान में ज्ञेय रूप से तीर्थंकर एवं सिद्ध जैसी पवित्र आत्माएँ भी प्रतिबिम्बित होती हैं और उसके ज्ञान में अभव्य एवं नारक आदि जैसे मलिन जीव भी प्रतिभासित होते हैं।
कहने का अभिप्राय यह है, कि आत्मा के ज्ञान-गुण में ज्ञेय रूप से संसारी जीव भी प्रतिबिम्बित होता है और सकलकर्मकलङ्क-विकल सिद्ध भी प्रतिभासित होता है। ज्ञान का विषय मूर्त और अमूर्त सभी प्रकार के पदार्थ हो सकते हैं। स्थूल और सूक्ष्म सभी प्रकार के पदार्थ ज्ञान के विषय हैं। जब हम ज्ञान को दर्पण के समान मान लेते हैं, तब उसमें किसी भी प्रकार के पदार्थ का प्रतिबिम्ब पड़े बिना कैसे रह सकता है? __ यह तथ्य आपको नहीं भूल जाना चाहिए कि ज्ञान का काम किसी पदार्थ को रागरूप अथवा द्वेषरूप में प्रतिभासित करना नहीं है। ज्ञान किसी भी पदार्थ को हित अहित रूप में प्रतिबिम्बित नहीं करता। ज्ञान का कार्य पदार्थ के रूप को प्रतिबिम्बित करना है। दर्पण का पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध है, वही आत्मा के ज्ञान-गुण का सम्बन्ध पदार्थों के साथ में है। यह कभी सम्भव नहीं है, कि पदार्थ ज्ञान का विषय न हो अथवा ज्ञान पदार्थ को विषय न करे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org