Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 56
________________ ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय ५५ भारत के दर्शनों में से एक दर्शन ने यह भी कहा है, कि ज्ञान पर-पदार्थ को तो जान सकता है, किन्तु स्वयं अपने को नहीं जान सकता। अपने विचार की पुष्टि के लिए उन्होंने एक रूपक प्रस्तुत किया है। उनका कहना है, कि नट-पुत्र नट-कला में कितना भी निपुण हो, वह दूसरे के कन्धों पर तो चढ़ सकता है, किन्तु स्वयं अपने कन्धों पर नहीं चढ़ सकता। नट-पुत्र बांस पर चढ़ सकता है, पतली रस्सी पर नाच सकता है और दूसरे के कन्धों पर चढ़ कर लोगों का मनोरंजन कर सकता है। किन्तु वह कितना भी निपुण क्यों न हो, स्वयं अपने कन्धों पर नृत्य नहीं कर सकता। इस तर्क ने एक बहुत बड़ी विचार धारा एवं चिन्तन धारा खड़ी करदी है। इस मीमांसा दर्शन के अनुसार ज्ञान कितना ही निर्मल और स्वच्छ क्यों न हो, उसमें पर-पदार्थ को जानने की शक्ति तो है, परन्तु अपने को जानने की शक्ति उसमें नहीं है। आँख दूसरे पदार्थों को देख लेती है, परन्तु वह अपने आपको नहीं देख सकती। यही स्थिति ज्ञान की है। जिस प्रकार आँख स्वयं को नहीं जानती, वह अपने से भिन्न दूसरों को ही जानती है, उसी प्रकार ज्ञान दूसरे पदार्थों को जान सकता है, परन्तु स्वयं अपने आपको नहीं जान सकता। - इसका अभिप्राय यही हुआ कि ज्ञान एक अज्ञेय तत्व है। आश्चर्य है, दूसरों को जानने वाला स्वयं अपने आपको नहीं जान सकता। परन्त भारत के दार्शनिकों का मस्तिष्क ज्ञान की इस अज्ञेयता पर चुप नहीं रह सका। मीमांसा दर्शन ने ज्ञान को अज्ञेय मान लिया, परन्तु प्रश्न यह है, कि जो स्वयं प्रकाश रूप नहीं है, वह दूसरे को प्रकाशित कैसे कर सकता है? जिस अन्धे व्यक्ति में स्वयं देखने की शक्ति नहीं है, वह अपने से भिन्न दूसरे अन्धों को मार्ग का परिज्ञान कैसे करा सकता है? भारत के दूसरे दार्शनिकों ने स्पष्ट रूप में यह कहा कि ज्ञान को अज्ञेय मानना तर्क-संगत नहीं है। ज्ञान में जब जानने की शक्ति है, तो जैसे वह दूसरे को जानता है वैसे स्वयं अपने आपको कैसे नहीं जान सकता? जैन दर्शन का सबसे बड़ा तर्क यही है, कि यदि ज्ञान में जानने की शक्ति है, तो दूसरों के समान वह स्वयं अपने आपको क्यों नहीं जान सकता? जैन दर्शन ने कहा कि ज्ञान तो दीपक के समान है, जैसे दीपक स्वयं अपने को भी जानता है और अपने से भिन्न दूसरे पदार्थों को भी जानता है। जिस प्रकार दीपक अपने से भिन्न दूसरे पदार्थों को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार वह स्वयं को भी प्रकाशित करता है। यदि दीपक में स्वयं को प्रकाशित करने की शक्ति न हो, तो वह दूसरे पदार्थों को भी प्रकाशित नहीं कर सकेगा। मैं आपसे आत्मा के ज्ञान गुण की चर्चा कर रहा था और आपको यह बता रहा था कि भारत के विभिन्न दार्शनिक ज्ञान के सम्बन्ध में क्या सोचते और विचारते रहे हैं ? भारत के दार्शनिकों में कणाद और गौतम भी विख्यात दार्शनिक रहे हैं। वे भी ज्ञान को अज्ञेय नहीं मानते। उनका कहना है, कि ज्ञान स्वयं भी ज्ञेय है, परन्तु ज्ञान को ज्ञेय मानने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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