Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 02
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ उववाय 661 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 2 उववाय काउलेस्सेहि वि एवं चेव चत्तारि उद्देसगा कायवा णवरं णेरइयाणं उववाओ जहा रयणप्पभाए सेसं तं चेव सेवं भंते ! भंते ! त्ति // 41||16|| तेउलेस्सरासीजुम्मकडजुम्मअसुरकुमाराणं भंते ! कओ उववजंति एवं चेवणवरं जेसु तेउलेस्सा अत्थि तेसु भाणियव्वं एवं एएवि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारी उद्देसगा कायव्वा / / सेवं भंते ! भंते ! त्ति // 51 // 20 // एवं पम्हलेस्साए विचत्तारि उद्देसगा कायव्वा। पंचिदियतिरिक्खजोणियामणुस्सा वेमाणियाणं एएसिं पम्हलेस्सा सेसाणं णत्थि सेवं भंते ! भंते ! त्ति // 41 // // 24|| जहा पम्हलेस्सा एवं सुक्कलेस्साए चत्तारि उद्देसगा कायव्वा णवरं मणुस्साणं गमओ जहा ओहियउद्देसएसु सेसं चेव एएसु छसु लेस्ससु चउव्वीसं उद्देसगा ओहिया चत्तारि सव्वे ते अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति सेवं मंते! भंते ! त्ति॥४१||२८|| भवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मणेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति जहा ओहिया पढमगा चत्तारि उद्देसगा तहेव णिरवसेसं एए चत्तारि उद्देसगा सेवं भंते ! भंते ! त्ति / / 41||32|| कण्हलेस्सभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मणेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा भवंति तहा इमेवि भवसिद्धियकण्हलेस्सेहि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा / / 41||36 / / एवं णीललेस्सभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा / / 41||4|| एवं काउलेस्साहि वि चत्तारि उद्देसगा // 41||44|| तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहिया सरिसा / / 41|4|| पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ||41|5|| सुक्कलेस्सेहिवि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा एवं एएविभवसिद्धिएहि विअट्ठावीसं उद्देसगा भवंति सेवं भंते! भंते ! त्ति // 41||56|| अभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मणेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति जहा पढमो उद्देसओ णवरं मणुस्साणं णेरइया य सरिसा भाणियव्वा सेसं तहेव सेवं भंते ! भंते ! त्ति एवं चउसुवि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा // 60 // कण्हलेस्सा अभव-सिद्धियरासीजुम्मणेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति एवं चेव चत्तारि उद्देसगा॥६॥ एवं णीललेस्सअभवसिद्धिएहिवि चत्तारिउद्देसगा॥६८|| एवं काउलेस्सेहिं विचत्तारि उद्देसगा / 72 / / एवं तेउलेस्सेहिंवि चत्तारि उद्देसगा // 76|| पम्हले स्से हिं वि चत्तारि उद्दे सगा ||80|| सुक्कलेस्से अभवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देसगा एवं एएस अट्ठावीसाएवि अभवसिद्धियउद्देसएसुमणुस्साणेरइयगमेणंणेतव्वा,सेवं भंते ! भंते ! त्ति एवं एतेवि अट्ठावीस उद्देसगा||४१||८४ा सम्मट्ठिी रासीजुम्म कडजुम्मणेरइयाणं भंते! कओ उववजंति एवं जहा पढमो उद्देसओ एवं चउसुवि जुम्मेसु चत्तारि उहे सगा भवसिद्धियसरिसा कायव्वा, सेवं भंते ! मंते ! त्ति ||8|| कण्हलेस्ससम्मद्दिट्ठी रासीजुम्मणेरइयाणं भंते ! उववजंति, एएवि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि वि उद्देसगा कायव्वा एवं सम्मट्ठिीसुवि भवसिद्धयसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा, सेवं भंते ! भंते ! ति जाव विहरइ // 41||11|| मिच्छट्ठिी रासीजुम्मकडजुम्मणेरइयाणं मंते ! कओ उववजंति एवं एत्थवि मिच्छादिट्ठी अभिलावेणं अभवसिद्धयसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायदा, सेवं मंते! भंते ! त्ति॥४१॥१४०|| कण्हपक्खियरासीजुम्मकड जुम्मणे रइयाणं भंते ! क ओ उववजंति एवं अभवसिद्धयसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा, सेवं भंते ! भंते ! त्ति // 41 // 168|| सुक्कपक्खियरासीजुम्मणेरइयाणं मंते ! कओ उववजंति एवं एत्थवि भवसिद्धयसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति एवं एएणं सव्वेवि छण्णउयं उद्देसगं सयं भवति ॥रासीजुम्मसयं सम्न्तं // 41 // 116 / (रासीजुम्मकडजुम्मनेरइयत्ति) राशियुग्मानां भेदभूतेन कृतयुग्मेन ये प्रमितास्ते राशियुग्मकृतयुग्मास्ते च ते नैरयिकाश्चेति समासोऽतस्ते, अणुसमयमित्यादि, पदत्रयमेकार्थम्॥ (आयजसेणंति) आत्मानः सम्बन्धि यशो यशोहेतुत्वाद्यशः संयम आत्मयशस्तेन (आयजसं उवजीवतित्ति) आत्मयश आत्मसंयममुपजीवन्त्याश्रयन्ति विदधतीत्यर्थः / इह च सर्वेषामेवात्मयशसैवोत्पत्तिरुत्पत्तौ सर्वेषामप्यविरतत्वादिति। इह च शतपरिमाणमिदमाद्यानि द्वात्रिंशच्छतान्यविद्यमानावान्तरशतानि त्रयस्त्रिंशादिषु तु सप्तसु प्रत्येकमवान्तरशतानि द्वादशचत्वारिंशेत्येकविंशतिरेकचत्वारिंशे तु नास्त्यवान्तरशतमेतेषां च सर्वेषां मीलनेऽष्टत्रिंशदधिकं शतानां शतं भवत्येवमुद्देशकपरिमाणमपि सर्वं शास्त्रमवलोक्यावसेयं तचैकोनविंशतिशतानि पञ्चविंशत्याधिकानीति। इह शतेषु कियत्स्वपि वृत्तिका, विहितवानहमस्मि सुशङ्कितः ! विवृतिचूर्णिगिरां विरहाद्विदृक् कथमशङ्कमियय॑थवा पथि। अति एकचत्वारिंश शतं वृत्तितः समाप्तम्। भ०४१ श०१६६ उ०। क्षुद्रयुग्मविशेषणेन नैरयिकादीनाम्। खुड्डागकडजुम्मणेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति किं रइएहिंतो उववजंति तिरिक्ख० पुच्छा, गोयमा ! णो णेरइएहिंतो उववजंति एवं रइओ उववाओ जहावकंतीएतहा भाणियव्वो, तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ? गोयमा ! चत्तारि वा अट्ट वा बारस वा सोलस वा संखेज्जा वा असंखेजा वा उववजंति तेणं भंते ! जीवा कहं उववजंति ? गोयमा ! से जहाणामए पवए पवमाणे अज्झवसाणे एवं जहा पंचवीसइमसएअट्टमुद्देसएणेरझ्याणंवत्तव्वयातहेव इहविभाणियव्वा जाव आयप्पओगेणं उववजंति को परप्पओगेणं उववजंति। रयणप्पमापुढ विखुड्डागकडजुम्मणेरइयाणं मंते ! कओ उवव

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