________________
{ xiv } (5) मलयगिरीय टीका-आचार्य मलयगिरी महान् टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध है इन्होंने 25 ग्रन्थों पर टीका की, ऐसा उल्लेख मिलता है। ये केवल आगमों के ही नहीं अपितु गणितशास्त्र, दर्शनशास्त्र व कर्मशास्त्र के भी गहरे विद्वान् थे। टीकाकारों में इनका स्थान प्रथम कोटि का है। इनकी टीकाएँ मूलस्पर्शी अधिक हैं। अपनी टीका में इन्होंने लगभग सभी शब्दों की सटीक एवं संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत की है। आवश्यक पर इनकी टीका अधूरी मिलती है। 1099 गाथा तक की टीका उन्होंने लिखी 1100वीं गाथा के पूर्वार्द्ध की व्याख्या मिलती है, उसके बाद साम्प्रतमर: अर्थात् अब अरनाथ का उल्लेख है ऐसा संकेत है। आगे न गाथा का उत्तरार्द्ध दिया है और न ही उसकी कोई व्याख्या है। इसका ग्रन्थमान 18,000 श्लोक प्रमाण है।
अन्य भी दीपिका, अवचूर्णि, टिप्पण आदि इस पर उपलब्ध हैं जो आवश्यक की महत्ता को उजागर करते हैं।
आवश्यक सूत्र के अनेक संस्करण अनेक संस्थाओं द्वारा प्रकाशित हुए हैं। सभी का आवश्यक को सर्वजन सुलभ बनाने का प्रयास स्तुत्य है। हमने इस संस्करण में आवश्यक सूत्र के पाठ, संस्कृत छाया, शब्दार्थ, भावार्थ, विवेचन एवं अनेक परिशिष्टों जिनमें श्रमण सूत्र विधि, श्रावक सूत्र विधि, प्रश्नोत्तर आदि के माध्यम से विशेष सामग्री देने का प्रयास किया है, सामग्री संकलन में अनेक संस्थाओं द्वारा प्रकाशित आवश्यक संबंधी पुस्तकों का सहयोग लिया, सबके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
आचार्य भगवन्त ने अनंत कृपा करके इस सूत्र की प्रस्तावना के संबंध में अपने भाव व्यक्त किये जिन्हें शब्द रूप में पिरोकर यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
आचार्य भगवन्त पूज्य गुरुदेव 1008 श्री हस्तीमलजी म.सा. जो जिनशासन के देदीप्यमान नक्षत्र थे, जिनका समूचा जीवन स्वाध्याय को समर्पित था उन्हीं की अहैतुकी कृपा से यह संस्करण तैयार हुआ है उनके प्रति नतमस्तक होते हुए हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।
अल्पज्ञता व प्रमादवश यदि जिनवाणी के विपरीत कुछ प्ररुपणा हुई हो तो उसका मिच्छा मि दुक्कडं देते हुए सुधी पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि यदि कोई स्खलना आपके ध्यान में आए तो अवश्य सूचित करावें ताकि आगे संशोधन किया जा सके। सुज्ञेषु किं बहुना!
शुभेच्छु प्रकाशचन्द जैन, प्राचार्य
मुख्य सम्पादक साहित्य प्रकाशन अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ