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{xiii } (2) विशेषावश्यक भाष्य-आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने सामायिक आवश्यक पर भाष्य लिखा, जो विशेषावश्यक भाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। इसे सामायिक भाष्य भी कहते हैं। यह ग्रन्थ विशेष रूप से आवश्यक नियुक्ति के अंतर्गत सामायिक नियुक्ति की व्याख्या के रूप में लिखा गया है। सैद्धांतिक एवं तात्त्विक दृष्टि से यह ज्ञान का आकर ग्रन्थ है। इसे दार्शनिक चर्चा का प्रथम एवं उत्कृष्ट कोटि का ग्रन्थ कहा जा सकता है। इस आगम में वर्णित लगभग सभी महत्त्वपूर्ण विषयों का वर्णन है। इस ग्रन्थ में अनेक ऐसे प्रकरण हैं, जो स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में हैं जैसे-पंचज्ञान, गणधरवाद, पंच नमस्कार आदि। पं. दलसुख मालवणियाजी के अनुसार-जैन परिभाषाओं को स्थिर रूप प्रदान करने में इस ग्रन्थ को जो श्रेय प्राप्त है, वह शायद ही अन्य अनेक ग्रन्थों को एक साथ मिलाकर मिल सके।
इस ग्रन्थ पर तीन टीकाएँ मिलती हैं-(अ) स्वोपज्ञ टीका-इसमें कुल 4329 गाथाओं की व्याख्या है जिनमें 735 नियुक्ति गाथाएँ है। यह टीका स्वयं भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने लिखी है, यह टीका अधूरी लिखी गई थी जिसे फिर कोट्याचार्य द्वारा पूरी की गई। (ब) कोट्याचार्य कृत टीकाजिनभद्रगणि की स्वोपज्ञ टीका को पूर्ण किया जिसका ग्रन्थमान 13700 श्लोक प्रमाण है। (स) मलधारी हेमचन्द्र कृत टीका-यह विस्तृत एवं गंभीर टीका है। इसमें इन्होंने सरल, सुबोध भाषा में दार्शनिक मन्तव्यों को स्पष्ट किया है, इसके माध्यम से इस गंभीर ग्रन्थ को पढ़ने में सुविधा हो गई है। इसमें 3603 गाथाएँ भाष्य की है जिन पर 28000 श्लोक प्रमाण टीका लिखी गई है।
(3) आवश्यक चूर्णि-इसमें विस्तार से गाथाओं की व्याख्या की गई है। यह संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में निबद्ध है। आवश्यक चूर्णि मुख्यत: नियुक्ति की व्याख्या करती है, कहीं-कहीं भाष्य की गाथाओं की भी व्याख्या मिलती है। जिनदासगणि महत्तर ने अनेक ग्रन्थों पर चूर्णियाँ लिखीं पर आवश्यक पर लिखी गई चूर्णि परिमाण में बृहत्तम है। यह छहों आवश्यक पर लिखी गई है। भाषा शैली की दृष्टि से भी यह चूर्णि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कथाओं की दृष्टि से यह अत्यंत समृद्ध ग्रन्थ है।
(4) हारिभद्रीय टीका-आचार्य हरिभद्र ने अनेक ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखीं पर उनमें आवश्यक एवं उसकी नियुक्ति पर लिखी गई टीका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस टीका में उन्होंने मूल भाष्य की गाथाओं की भी व्याख्या की है। टीका का प्रयोजन बताते हुए वे कहते हैं
यद्यपि मया तथान्यैः कृतास्य निवृतिस्तथापि संक्षेपात्।
___ तद्रूचिसत्त्वानुग्रहहेतोः, क्रियते प्रयासोऽयम्।। इसमें स्पष्ट है कि इस टीका से पूर्व उन्होंने तथा किसी अन्य आचार्य ने एक बृहद् टीका का निर्माण किया था, जो आज हमारे सामने उपलब्ध नहीं है, बाद में उन्होंने यह संक्षिप्त टीका लिखी। यह टीका 22,000 श्लोक प्रमाण है।