Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
प्रत
सूत्रांक
[8]
दीप
अनुक्रम
[ε]
विपाके
श्रुत० १
॥ ३७ ॥
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः )
श्रुतस्कंध [१],
अध्ययनं [१]
मूलं [४]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित... .. आगमसूत्र [११], अंग सूत्र [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायते चत्तारि पुते सव्वालंकारविभूसिए करेति २ त्ता भगवतो गोय मस्स पादेसु पाडेति २ ता एवं वयासी- एए णं भंते! मम पुत्ते पासह, तते णं से भगवं गोयमे मिया| देवीं एवं वयासी-नो खलु देवा० अहं एए तव पुत्ते पासि हव्यमागते, तत्थ णं जे से तब जेडे मियापुते दारए जाइअंधे जातिअंधारूवे अं णं तुमं रहस्सिसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी २ विहरसि तं णं अहं पासिउं हवमागए, तते णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी-से के णं गोयमा ! से तहारूवे णाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एसमट्ठे मम ताव रहस्सिकए तुम्भं हव्वमक्खाए जेओ नं तुन्भे जाणह ?, तते णं भगवं गोयमे मियादेवीं एवं क्यासि - एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे जतो णं अहं जाणामि, जावं च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धिं एयम संलवति तावं चणं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था, तते णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी -तुम्भे णं भंते! इहं चेव चिट्ठह जाणं अहं तुम्भं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमित्तिकट्टु जेणेव भत्तपाणघरे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता वैत्थपरियद्वयं करेति वत्थपरियहयं करिता कट्टसगडियं गिण्हति कट्टसग डियं गिव्हित्ता विपुलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स भरेति विपुलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स भरित्ता
१ 'जओ णं'ति यस्मात् । २ 'जाया यावि होत्था' जाता चाप्यभवदित्यर्थः । ३ 'वत्थपरियहं ति वस्त्रपरिवर्त्तनम् ।
Eaton nationa
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~13~
१ मृगापु
श्रीयाध्य.
मृगापुत्रा
वलोकन
सू० ४
॥ ३७ ॥

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