Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ आगम (११) प्रत सूत्रांक [33] दीप अनुक्रम [३५-३७] “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः) श्रुतस्कंधः [२], अध्ययनं [१] मूलं [३३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ११ ], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः कलक्खणे मुलद्वे णं मणुस्सजम्मे सुकयत्थ ] जाव तं धन्ने णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई । तते गं से | सुमुहे गाहाबई पहुई बाससताई आउयं पालइत्ता कालमासे कालं किया इहेव हत्थिसीसे नगरे अदीणसतुस्स रन्नो धारणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबवन्ने, तते णं सा धारणी देवी सयणिज्वंसि सुत्तजागरा २ ओहीरमाणी २ तहेव सीहं पासति सेसं तं चैव जाव उपिं पासाए विहरति, तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा इमा एयावा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, पभू णं भंते! सुबाहुकुमारे देवाणुपियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वतए ?, हंता पनू, तते णं से भगवं गोयमे समणं भगवं० वंदति नम॑सति २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं से समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ हूत्थिसीसाओ णगराओ पुष्फगउज्जाणाओ कथवणमालजक्खाययणाओ पडिणिक्खमति २ता बहिया जणवयविहारं विहरति, तते णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाते अभिगयजीवाजीवे जाव पडिला भेमाणे विहरति । तते णं से सुबाहुकुमारे अन्नया कयाई चाउदसमुद्दिपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छति २ ता पोसहसालं पमजति २ सा उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहति २त्ता दम्भसंधारगं संघरति २ दम्भसंधारं दुरूहइ दुरुहित्ता अट्टमभत्तं परिण्हइ पगिण्हेत्ता पोसहसालाए पोसहिते अट्टमभत्तिए पोसहं १ 'अभिगयजीवाजी' se aartणात् 'sarayaपावे' इत्यादिकम् 'अहापडिगाहिपहिं तंबोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरह' एतदुक्तं दृश्यम् । २ ' चा उद्दसमुद्दिपुण्णमासिणीसु'ति अनोद्दिष्टा- अमावास्या । Education International For Pernal Use Only ~ 124~

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132