Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रुतस्कंध: [२], ------------------------ अध्य यनं [१] ---------------------------- मूलं [३३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३३]
दीप अनुक्रम [३५-३७]
तते णं तस्स सुवाहुयस्स कुमार०तं महया जहा पढमं तहा निग्गओ धम्मो कहिओ परिसा राया पडिगया. तते णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतिए धम्म सोचा निसम्म हतुट्ट जहा मेहे तहा अम्मापियरो आपुच्छति णिक्खमणाभिसेयो तहेव जाव अणगारे जाते ईरियोसमिए जाव बंभयारी, तते गं से सुबाहु अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्याई एक्कारस अं-12 गाई अहिज्वति २बहूहिं चउत्थछट्ठहम० तवोविहाणेहिं अप्पाणं भाविता बहूई वासाई सामनपरियागं पाउ|णित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते
कालमासे कालं किचा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने, से गं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं| ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिद २ केवलं बोहिं बुज्झिहिति २ तहारूवाणं घेराणं|
१'जहा पढमति यहवाध्ययने प्रथमं जमालीनिदर्शनेन निर्गतोऽयमुक्तस्तथा द्वितीयनिर्गमेऽयं नगराद्विनिर्गत इति वाच्यम् , | उभवत्र समानो वर्णकग्रन्थ इति भावः। २ 'ईरियासमिए' इत्यत्र यावत्करणाविदं दृश्य-भासासमिए ४ एवं मणगुत्ते ३ गुत्तिदिए | गुत्तत्ति-गुतवंभयारी । ३ 'आउक्खएणति आयुःकर्मद्रव्यनिर्जरणेन 'भवक्खएण'ति देवगतिवन्धनदेवगत्यादिकर्मद्रव्यनिर्जरणेन | 'ठिइक्खएण'ति आयुष्कादिकमथितिविगमेन 'अणंतरं चयं चाइस'चि देवसम्बन्धिनं देहं त्वक्वेत्यर्थः, अथवाऽनन्तरं-आयुःक्षयाधनन्तरं च्यवनं 'चइत्त'त्ति व्युत्वा ।
C40GADE
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