Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१०] ------- ---------- मूलं [३२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३२]
दीप अनुक्रम
विपाके गणिया एयकम्मा ४ सुबहुं समजिणित्ता पणतीसं वाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किचा|१० अनुश्रुत०१६ छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयत्ताए उववन्ना, साणं तओ अणंतरं उव्वहित्ता इहेव वद्धमाणपुरे णगरे धण- देव्य.
देवस्स सत्थवाहस्स पियंगुभारियाते कुञ्छिसि दारियत्ताए उववन्ना, तते णं सा पियंगुभारिया णवण्हं मा- पूर्वपश्चा॥८८॥
साणं दारियं पयाया, नाम अंजूसिरी, सेसं जहा देवदत्ताए । तते णं से विजए राया आसवाह जहा द्भवाः बेसमणदत्से तहा अंजू पासह णवरं अप्पणो अट्ठाए वरेति जहा तेतली जाव अंजूए दारियाते सद्धिं उप्पि81 जाव विहरति, तते णं तीसे अंजूते देवीते अन्नया कयावि जोणिसूले पाउन्भूते यावि होत्था, तते णं विजये। राया कोइंबियपुरिसे सहावेति २ एवं वयासी-गच्छह णं देवाणुप्पिया! वद्धमाणे पुरे णगरे सिंघाडग जाव।
एवं वदह-एवं खलु देवाणुप्पिया! विजय० अंजूए देवीए जोणिसूले पाउन्भूते जो णं इत्थ विजो था ६ जाच द उग्धोसेंति, तते णं ते बहवे विज्जा वा ६इम एपारूवं सोचा निसम्म जेणेव विजए राया तेणेव उवागच्छंतित
रत्ता अंजूते बहवे उप्पत्तियाहिं ४ परिणामेमाणा इच्छंति अंजूते देवीए जोणिसूलं उचसामित्तते, नो संचाएंति उवसामित्तए, तते णं ते यहवे विजा य ६ जाहे नो संचाएंति अंजूदेवि० जोणिसूल उवसामित्तते
१'जहा तेयलि'त्ति ज्ञाताधर्मकथायां यथा तेतलिसुतनामा अमात्यः पोट्टिलामिधानां कलादमूषिकारश्रेष्ठिसुतामात्मार्थ याच-13 यित्वा आत्मनैव परिणीतवान् एवमयमपीति ।
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