Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ------------------------ मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
ASRECENSAX
सेणं सागरोवमद्वितीएम नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने, से णं ततो अणंतरं उध्वहित्ता इहेव मियग्गामे गगरेट |विजयस्स खसियस्स मियाए देवीए कुञ्छिसि पुत्सत्ताए उववन्ने, तते णं तीसे मियाए देवीए सरीरे वेयणा पाउन्भूया उज्जला जाव जलंता, जप्पमिदं च णं मियापुसे दारए मियाए देवीए कुञ्छिसि गम्भत्साए उववन्ने तप्पमिईच णे मियादेवी विजयस्स अणिट्ठा अर्कता अप्पिया अमणुन्ना अमणामा जाया यावि होत्था, तते णं तीसे मियाए देवीए अन्नया कयाई पुन्वरत्तावरसकालसमयंसि कुटुंबजागरियाए जागरमाणीए इमे एयारूवे अजमथिए जाव समुप्पजिस्था-एवं खलु अहं विजयस्स खसियस्स पुचि हा धेज्जा सासिया अणुमया आसी, जप्पमिदं च णं मम इमे गम्भे कुञ्छिसि गन्भत्साए उववन्ने तप्पभिई च णं अहं विजयस्स खत्तियस्स अणिवा जाव अमणामा जाया यावि होत्था, निच्छति णं विजए खसिए मम नामं वा गोयं
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दीप
अनुक्रम
१'पुष्यरत्तावरत्तकालसमयंसि'त्ति पूर्वरात्रो-रात्रेः पूर्वभाग: अपररात्रो-रात्रेः पश्चिमो भागस्तलक्षणो यः कालसमयः |-कालरूपः समयः स तथा तत्र 'कुटुंबजागरियाए'त्ति कुटुम्बचिन्तयेत्यर्थः, 'अज्झस्थिए'त्ति आध्यात्मिकः आत्मविषयः, इह चा
न्यान्यपि पदानि दृश्यानि, तद्यथा-'चिंतिए'त्ति स्मृतिरूपः 'कप्पिए'ति बुझ्या व्यवस्थापितः 'पस्थिति प्रार्थितः प्रार्थनारूपः 'मणो" गए'त्ति मनस्येव वृत्तो बहिरप्रकाशितः संकल्पः-पर्यालोचः, 'इडे'त्यादीनि पञ्चैकार्थिकानि प्राग्वत्, 'धिजे ति ध्येया 'वेसासिय'त्ति
विश्वसनीया अणमय'ति विप्रियदर्शनस्म पश्चादपि मता अनुमतेति, 'नाम'ति पारिभाषिकी सझा 'गोयंति गोत्रं-आन्वर्थिकी सीवेति
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