Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 62
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रुतस्कं ध: [१], ------------------------ अध्य यनं [3] ---------------------------- मूलं [१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१९] विपाके विलुपाहि २ अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि २ मम उवणेहि, तते णं से दंडे तहत्ति एयमह अभन्नश्रुत०१ पडिसुणेति, तते णं से दंडे बहूहिं पुरिसेहिं सपणद्धबद्ध जाव पहरणेहिं सद्धिं संपरिबुडे मग्गइतेहिं फल-13 सेनाध्य. एहिं जाव छिप्पतूरेणं वजमाणेणं महया जाय उक्किहि जाव करेमाणे पुरिमतालं णगरं मझमज्झेणं निग्ग- ॥ ६१॥ अभग्नसेच्छति २त्ता जेणेच सालाडवीए चोरपल्लीए तेणेव पहारेत्य गमणाते, तते णं तस्स अभग्गसेणस्स चोरसे- नस्य पल्लीदुणावतियस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लदहा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली जेणेव अभग्गसेणे चो- पतिता रसेणाचई तेणेच उवागच्छंति २त्ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले गरे सू०१९ महन्यलेणं रमा महाभडचडगरेणं डंडे आणसे-गच्छहणं तुमे देवाणुप्पिया! सालाडवं चोरपलिं विलंपाहि| अभग्गसेणं चोरसेणावतिं जीवगाहं गेण्हाहि २त्ता मम उवणेहि, तते णं से दंडे महया भडचाडगरेणं जे-18 व सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तते णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसिं चारपुरिसाणं है अंतिए एयमई सोचा निसम्म पंच चोरसताई सद्दावेति सद्दावेत्ता एवं बयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया। पुरिमताले गरे महब्बले जाव तेणेव पहारेथ गमणाए आगते, तते णं से अभग्गसेणे ताई पंच चोरस-IX ताई एवं वयासी-तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तं दंडं सालाडविं चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव प दीप अनुक्रम [२२] K44-45 | ॥६१ १'जीवगाहं गेण्हाहित्ति जीवन्तं गृहाणेत्यर्थः। २'भडचडगरेण ति योधवृन्देन । ~ 61~

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