Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(११)
प्रत
सूत्रांक
[२४]
दीप
अनुक्रम
[२७]
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः )
श्रुतस्कंधः [१],
अध्ययनं [५]
मूलं [२४]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
विपाके
श्रुत० १
॥ ६८ ॥
हिए होत्था रिडेब्य ४ जाव अथव्वणकुसले आवि होत्था, तते णं से महेसरदत्ते पुरोहिए जियसचुस्स रनो ५ रजबलविषणअद्वआए कल्लाकालिं एगमेगं माहणदारयं एगमेगं खत्तियदारयं एगमेगं वहस्सदारयं एगमेगं सुदारगं गिण्हावेति २ तेसिं जीवंतगाणं चैव हिपउंडए गिण्हावेति जियसत्तुस्स रनो संतिहोमं करेति, 5 तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए अहमीचोदसीस दुवे माण १ खत्तिय २ वेस ३ सुद्दे ४ चोण्डं मासाणं च १ सारि २ छच्हं मासाणं अट्ठ २ संवच्छरस्स सोलस २ जाहे जाहेऽविष णं जियसनू राया परवलेणं अभिजुंजह ताहे ताहेबिय णं से महेसरदत्ते पुरोहिए असयं माहणदारगाणं असयं खतियदारगाणं असणं सुद| दारगाणं अट्ठसयं बेसदारगाणं पुरिसे मिण्हावेति गिण्हावेता तेसिं जीवंताणं चैव हिडीओ गिन्हा बेलि २ जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेति, तते णं से परबले खिप्पामेव विद्धंसिइ वा पटिसेहिलाइ वा ( सू० २४ ) तते णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे० सुबद्धं पावकम्मं समज्जिणिसा तीसं वाससपं परमाजयं | पालहला कालमासे कालं किया पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तर ससागरोषमट्ठिएए नरने उचयने, से पां ततो अप्यंतरं उब्वहित्ता इद्देव कोसंबीए नगरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए पुत्तत्ताए उबवन्ने, तते णं तस्स
१ 'रिउब्वेय'त्ति एतेनेदं दृश्यं - रिजन्वेयजजुन्वेय सामवेयअथब्वणवेय कुसले ति दृश्वं व्यकं च । हृदयमांसपिण्डान् ।
For Pass Use Only
२ 'हिययचंडीओ'चि
अत्र मूल संपादने शीर्षक-स्थाने सूत्र क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते यत् सू० २४ स्थाने सू० २१ इति क्रम मुद्रितं
~75~
५ बृहस्प
ति. महेश्व
रभवः
सू० २१
॥ ६८ ॥
wor

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132