Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 106
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१], ...................---- अध्य यनं [९] ------.. -...---- मूलं [३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३१] दीप अनुक्रम [३३] सयाणं इमीसे कहाए लद्ध० समा० अन्नमन्ने सद्दावेंति २एवं वयासी-एवं खलु सीहसेणे राया सामाएदेवदत्ता. श्रुत०१ देवीए उथरि मुच्छिए अम्हा णं धूआ णो आढाति जाव अंतराणि अछिद्दाणि. पडिजागरमाणीओ विह-श्यामायाः प्रारति तं न नजति भीया जाव झियामि, तते णं से सीहसेणे राया सामं देवि एवं वयासी-मा णं तमसपलीनां ॥८३॥ देवाणुप्पिया! ओह जाच झियाइसि, अहन्नं तह पत्तिहामि जहा णं तव णस्थि कत्तोवि सरीरस्स आवाहे मृतिः श्ववा पवाहे वा भविस्सतित्तिका ताहिं इहाहिं ६ समासेति, ततो पडिनिक्खमति २त्ता कोडुंबियपुरिसे श्वामारण है सहावेइ २त्सा एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सुपइट्ठस्स गरस्स बहिया एगं महं कृडागार सालं करेह अणेगक्खंभसयसन्निविटुं० पासा०४ करेह २ मम एयमाणत्तियं पचपिपणह, तते ण ते कोडुबि-| रायपुरिसा करयल जाव पडिसुणेति २ सुपइट्टनगरस्स बहिया पचत्थिमे दिसीविभाए एग महं कूडागार सालं जाव करेंति अणेगक्खंभस० पासा.४ जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवागच्छति २त्ता तमाणत्तियं पचप्पिणंति, तते णं से सीहसेणे राया अन्नया कयाति एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंचमाइसयाई आमतेति, तते णं तासिं एगणापंचदेवीसयाणं एगणपंचमाइसयाई सीहसेणेणं रन्ना आम १ 'घत्तिहामिति यतिष्ये 'नस्थित्ति न भवत्ययं पक्षो यदुत 'कत्तोइ'त्ति कुतश्चिदपि शरीरकप आबाधा का भविष्यति, तत्र आवाधः-ईषत्पीडा प्रबाध:-प्रकृष्टा पीदैव 'इतिकट्टत्ति एवमभिधाय । २'अणेगक्खंभिय'ति अनेकस्तम्भशतसन्निविष्ठामित्यर्थः, 'पासा' इत्यनेन 'पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूष मिति तश्यम् । ... अत्र मूल संपादने सूत्र-क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते- यत् सू० ३० स्थाने सू० ३१ इति क्रम मुद्रितं, मूल संपादनमें भूलसे सूत्र का क्रम ३० के बजाय ३१ छप गया है| इसिलिए हमे भी सूत्रक्रम- ३१ लिखना पड़ा है। ~ 105~

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