Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रतस्कंध: [१], ...................---- अध्य यनं [९] ------.. -...---- मूलं [३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३१]
दीप अनुक्रम
दतियाई समाणाति सव्वालंकारविभूसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपाढे णगरे जेणेव सीहसेणे राया तेणेव Pउवागच्छंति, तते णं से सीहसेणे राया एगणपंचदेवीसयाणं एगूणगाणं पंचण्ह माइसयाणं कूडागारसालं आ
वासे दलयति, तते णं से सीहोणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेतिरत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम्हे देवाणुदापिया! विउलं असणं ४ उवणेह सुबहुं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं च कूडागारसालं साहरह य, तते णं ते को
इंबियपुरिसा तहेब जाव साहरेंति, तते णं तासिं एगूणगाणं पंचहं देवीसयाणं एगणपंचमाइसयाई सव्वालंकारविभूसियाई करति १२ विउलं असणं ४ सुरं च ६ आसाएमाणाई ४ गंधव्वेहि प नाइएहि य उवः । गीयमाणाई २ विहरंति, त० से सीह राया अद्धरत्तकालसमयंसि बहूहिं पुरिसेहिं सद्धिं संपरिबुडे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उपागच्छति २त्ता कूडागारसालाए दुवाराई पिहेति कूडागारसालाए सवओ समंता
अगणिकार्य दलयति, तते णं तासि एगणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणगाई पंच [धाई]माइसयाई सीह-18 दारण्णा आलीवियाई समाणाई रोयमाणाई ३ अत्ताणाई असरणाई कालधम्मुणा संजुत्ताई, तते णं से सी
हसेणे राया एयकम्मे ४ सुबहुं पावकम्मं समजिणित्ता चोत्तीसं वाससयाई परमाउयं पालइत्ता' कालमासे 18 कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमाई ठितिएसु उववन्ने, से णं तओ अणंतरं उबहित्ता
इहेव रोहीडए नगरे दत्तस्स सत्यवाहस्स कन्नसिरिए भारियाए कुञ्छिसि दारियत्ताए उववन्ने, तते णं सा कन्नसिरी नवण्हं मासाणं जाव दारियं पयाया सुकुमाल सुरूवं, तते णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नि
GESAKCARKAR
[३३]
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... अत्र मूल संपादने सूत्र-क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते- यत् सू० ३० स्थाने सू० ३१ इति क्रम मुद्रितं, मूल संपादनमें भूलसे सूत्र का क्रम ३० के बजाय ३१ छप गया है| इसिलिए हमे भी सूत्रक्रम- ३१ लिखना पड़ा है।
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