Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(११)
प्रत
सूत्रांक
[३१]
दीप
अनुक्रम [३३]
अनु. १६
“विपाकश्रुत” अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः )
अध्ययनं [९]
श्रुतस्कंध [१]
मूलं [३१]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ..... आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
-
एवं संपेहेन्ति सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ २ विहरंति, तते णं सा सामा देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी एवं वयासी एवं खलु सामी ! मम पंचण्हं सबत्तीसवाणं पंच माइसपाई इमी से कहाए लद्ध० समा० अन्नमन्नं एवं बयासी एवं खलु सीहसेणे जाव पडिजागरमाणीओ विहरंति, तं न नज्जति णं मम केणवि कुमरणेणं मारिस्सतित्तिकहु भीया जेणेव को घरे तेणेव उधागच्छति २ सा ओहय जाव झियाति, तते णं से सीहसेणे राया इमीसे कहाए लडट्ठे समाणे जेणेव कोवघरए जेणेव सामा देवी तेणेव उवागच्छति २ सा सामं देविं ओह० जाव पासति २ त्ता एवं वयासी-कि देवाणुपिया ! जाव ओह० शियासि ?, तते णं सा सामा देवी सीहसेणेण रण्णा एवं वृत्ता समाणा उष्णओफेणीयं सीहसेणं रायं एवं वयासी एवं खलु सामी । मम एगूणपंचसवत्तीसयाणं एगूणपंच [धाई] माइ
Education Internationa
१ 'भीया जेण'त्ति 'भीया तत्था जेणेवेत्यर्थः । २ 'ओहयजाव' इह यावत्करणादिदं दृश्यम् - ओहयमणसंकप्पा भूमीगयदिट्ठिया करतलपल्हत्यमुही अट्टज्झाणोवगय'ति । ३ 'उप्फेणउप्फेणियं' ति सकोपोष्मवचनं यथा भवतीत्यर्थः । ४ इतोऽनन्तरवाक्यस्यैकैकमक्षरं पुस्तकेषूपलभ्यते तचैवमवगन्तव्यम् —' एवं खलु सामी ! ममं एगुणगाणं पंचपं सबत्तीसयाणं एगूणपंचमाइसयाई इमीसे कहाए लडहाई सवणयाए अन्नमनं सहावेंति अन्नमन्नं सहावेता एवं वयासी एवं खलु सीइसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परियाणाइ अणाढाएमाणे अपरियाणमाणे बिहरइ।' 'जा' इति यावत्करणात् तवेदं दृश्यं तं सेयं खलु अम्ह सामं देवीं अग्गिपओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्यप्पओगेण वा जीवियाओ वबरोवित्तए, एवं संपेदेइ संपेहित्ता ममं अंतराणि छिद्दाणि पढिजागरमाणी ओचिह्नति, तं न नव्बइ सामी ! भ्रमं केणइ कुमरणेणं मारिस्संतित्तिकट्टु भीया' यावत्करणात् 'तत्था तसिया उब्बिग्गा ओहह्यमणसंकप्पा भूमीगयदिट्ठीया' इत्यादि दृश्यं,
For Pal Use Only
www.landsbrary org
*** अत्र मूल संपादने सूत्र क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते यत् सू० ३० स्थाने सू० ३१ इति क्रम मुद्रितं, [ मूल संपादनमें भूलसे सूत्र का क्रम ३० के बजाय ३१ छप गया है| इसिलिए हमे भी सूत्रक्रम- ३१ लिखना पड़ा है।
~ 104~

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132