Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 101
________________ आगम (११) प्रत सूत्रांक [२९] दीप अनुक्रम [३२] “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः) - श्रुतस्कंध [१], अध्ययनं [C] मूलं [२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः लोहि य दहमहणेहिं दहवहणेहिं दहपवहणेहि य अयंपुलेहि य पंचपुलेहि य मच्छंधलेहि य मच्छपुच्छेहि य जंभाहि य तिसिराहि य भिसिराहि य विसराहि य विसिराहि य हिल्लीरिहि य झिल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वैकबंधेहि य सुत्तबंधणेहि य वालबंधणेहि य महवे सण्हमच्छे य जाव पडागातिपडागे य गिण्हति एगट्टियाओ नावा भरति कूलं गार्हति मच्छखलए करेंति आयवंसि दलयंति, अन्ने य से बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्तवेयणा आयवतत्तपहिं सोलेहि य तलेहि य भजेहि प रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, अध्पणाविय णं से सोरियदत्ते बहूहिं सहमच्छेहि य जाव पडाग० सोल्लेहि य भज्जेहि य सुरं च ६ आसाएमाणे ४ विहरति, तते तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अन्नया कयाई ते मच्छसोल्ले तले भजे आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे आदि होत्था, तए णं से सोरियमच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूते समाणे कोटुंबियपुरिसे सहावेति २ एवं वयासी- गच्छह णं तुम्हे देवाणुप्पिया! सोरियपुरे नगरे संघाडग जाव पहेसु य महया २ सदेणं उग्घोसेमाणा २ एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! सोरियस्स मच्छकंटए गले लग्गे तं जो णं इच्छति विजो वा ६ सोरियमच्छियस्स मच्छकंदयं गलाओ निहरितते तस्स णं सोरिय० विउलं अत्थसंपयाणं दलयति, तते णं ते कोडुंबियपुरिसा जाब उग्घोसंति, तए णं ते बहवे विज्जा य ६ इमेयारूवं उग्घोसणं उग्घोसिनमाणं निसार्मेति २ जे० सोरिय० गेहे जे० सोरियमच्छंघे तेणेव उवाग१ 'वहि य'त्ति वल्कबन्धनैः सूत्रबन्धनैर्वालबन्धनैश्चेति व्यक्तं, 'मच्छखलए करेंति 'ति स्थण्डिलेषु मत्स्यपुञ्जान् कुर्व्वन्ति । Ja Eucation Internation For Parts On ~ 100~

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