Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रतस्कंध: [१], .....................-- अध्य यनं [६] ------ -- -- मूल [२६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२६]
दीप अनुक्रम
वाससयाई परमाउयं पालहत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए चकोसेणं यावीससागरोवमठितीएसु णेरइत्ताए उबवन्ने (सू०२६) से णं ततो अणंतरं उब्वद्वित्ता इहेव महुराए णगरीए सिरीदामस्स रण्णो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए. उचवन्ने, तते णं बंधुसिरी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं जाव दारगं पपाया, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयाणुरूवं नामजं करेंति होऊ णं अम्हं|
दारगाणं नंदिसेणे नामेणं, तते णं से नंदिसेणे कुमारे पंचधातीपरिचुडे जाव परिवुडइ, तते णं से नंदिसेणे द्र कुमारे उम्मुकवालभावे जाव विहरति जोव्व० जुवराया जाते यावि होत्या, तते णं से गंविसेणे कुमारे भारजे य जाव अंतेउरे य मुच्छिते इच्छति सिरिदामं रायं जीवियातो ववरोवित्तए सपमेव रज्जसिरिं कारे-1 3माणे पालेमाणे विहरित्सए, तते णं से गंदिसेणे क्रमारे सिरीदामस्स रनो बहणि अंतराणि य छिदाणि यx दाविवराणि य पडिजागरमाणे विहरति, तते णं से नंदिसेणे कुमारे सिरीदामस्स रन्नो अंतरं अलभमाणे अ
नया कयाई चित्तं अलंकारियं सहावेति २एवं वयासी-तुम्हे णं देवाणुप्पिया। सिरीदामस्स रनो सब्ब-I हाणेसु य सब्वभूमीसु य अंतेउरे दिण्णवियारे सिरीदामस्स रनो अभिक्खणं २ अलंकारियं कर्म करेमाणे द बिहरसि, तण्णं तुम्हं देवाणुपिया! सिरीदामस्स रन्नो अलंकारियं कम्मं करेमाणे गीवाए खुरं निषेसेहि तो णं अहं तुम्हं अद्धरज्जयं करेस्सामि तुम्हं अम्हेहिं सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्ससि, १ 'कुमारे'ति कुमारः। २ 'अंतराणि यति अवसराम् 'छिड्डाणि यत्ति अल्पपरिवारत्वानि, 'विरहाणि यत्ति विजनलानि ।
[२९]
नन्दिवर्धनस्य आगामि-भवा:
~84~

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