Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [७] ----------------------- मूलं [२८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
FAC
प्रत
सूत्रांक
[२८]
दीप अनुक्रम
पिया! दारगं वा दारियं वा पयामि ते णं जाव उवातिणति २त्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया । तते णं से धनंतरी विजे ताओ नरयाओ अणंतरं उव्वहित्ता इहेव जंबुद्दीवे २ पाडलसंडे नगरे गंग-IP दत्ताए भारियाए कुञ्छिसि पुत्तत्ताए उचवन्ने, तते णं तीसे गंगदत्ताए भारियाए तिण्हं मासाणं बहुपडि|पुन्नाणं अयमेयारूवे दोहले पाउम्भूते-धन्नाओ णं वाओ जाब फले जाओ णं विलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडाति २ बरहिं जाव परिवुडाओ तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ पुरफ जाव गहाय पाडलसंड नगरं मज्झंमज्झेणं पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छित्ता पुक्खरणी ओगाहिंति पहाता जाव पायच्छित्ताओ तं विपुलं असणं पाणं खाइम साइमं बहूहि मित्तणाइ जाच सद्धिं आसादेति दोहलं विणयेति, एवं संपेहेइ २ कल्लं जाव जलंते जेणेव
सागरदत्ते सत्यवाहे तेणेव उवागच्छति र सागरदत्तं सत्थवाहं एवं धयासी-वन्नाओ णं ताओ जाब विणेंति हातं इच्छामि णं जाव विणित्तए, तते णं से सागरदत्ते सत्यवाहे गंगदत्साए भारियाए एयमहूँ अणुजाणति
तते णं सा गंगदत्ता सागरदत्तेणं सत्यवाहेणं अम्भणुन्नाया समाणी विपुलं असणं पार्ण खाइमं साइमं उब-IN क्खडावेति तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ सुबहुं पुप्फ० परिगिण्हावेइ बहहिं जाव हाया कयबलिकम्मा जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खाययणे जाव घुवं डह जेणेव पुक्खरणी लेणेव उवागच्छति, तते णं तातो मित्त जाव महिलाओ गंगदत्तं सत्यवाहं सवालंकारविभूसियं करेंति, तते णं सा गंगदत्ता भा
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