Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [७] ----------------------- मूलं [२८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
विपाके श्रुत०१
सूत्रांक
॥७८॥
[२८]
दीप अनुक्रम
RABASANSARS
रिया ताहि मित्तनाईहिं अन्नाहिं बहहिं णगरमहिलाहिं सद्धिं तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च
६ ७ उम्बरदोहलं विणेति २ जामेव दिसि पाउन्भूता तामेव दिसि पडिगया, सा गंगदत्ता सत्यवाही पसत्थदोहला तं दत्ताध्य. गन्भं सुहंसुहेणं परिवहति, लते णं सा गंगदत्ता भारिया णवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं जाव पयाया ठिइ० उम्बरदत्तया जाव जम्हा णं इमे दारए उंबरदत्तस्स जक्खस्स उववातियलद्धते तं होऊ णं दारए उंबरदत्ते नामेणं,
प्रागुत्तरतते णं से उबरदत्ते दारए पंचधातिपरिग्गहिए परिवहुइ, तते णं से सागरदत्ते सत्यवाहे जहा विजयमित्ते भवाः जाव कालमासे कालं किच्चा, गंगदत्तावि, उंबरदत्ते निच्छुढे जहा उजिमयते, तते णं तस्स उंबरदत्तस्स दार-15 सू०२८ यस्स अन्नया कयावि सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउन्भूपा, तंजहा-सासे खासे जाव कोडे, तते णं से उबरदत्ते दारए सोलसहिं रोगार्यकहिं अभिभूए समाणे सढियहत्थं जाव विहरति. एवं खलु गोयमा! उंबरदसे पुरा पोराणाणं जाच पचणुभवमाणे विहरति, तते णं से उबरदत्ते दारए कालमासे कालं किया कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति?, गोयमा! उंचरदत्ते दारए बावत्तरि वासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किया इमीसे रयणप्पभाए पुढधीए णेरइयत्साए उववन्ने संसारो तहेब जाव पुढवी, ततो हस्थिणाउरे णगरे कुकुडत्ताए पञ्चायायाहिति गोटिवहिए तहेव हत्थिणारे णगरे सेहिकुलंसि उववजिहिति बोर्हि सोहम्मे कप्पे महाविदेहे चासे सिज्झिहिति निक्खेवो॥(सू०२८) संत्तम अज्झयणं सम्मत्तं ॥७॥
१ सप्तमाध्ययनस्य विवरणं चंबरदचाख्यस्य ॥ ७॥
[३१]
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||॥ ७८॥
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अत्र सप्तमं अध्ययनं परिसमाप्तं
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