Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 86
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्तिः ) श्रतस्कंध: [१] ............------ अध्ययनं [६] .... .- मूलं [२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत * सूत्रांक [२७] दीप अनुक्रम विपाके तते णं से चित्ते अलंकारिए नंदिसेणस्स कुमारस्स वयणं एयमझु पडिसुणेति, तए णे तस्स चित्तस्स अलं- नन्दिषेश्रुत०१ 18कारियस्स इमेयारूवे जाच समुप्पजित्था-जहणं मम सिरीदामे राया एपमई भागमेति सते मे मम मण- णा-पुरतो हैाति केणति असुभेणं कुमरणेण मारिस्सतित्सिकह भीए जेणेव सिरीदामे राया लेणेव जयागकति सिरी- भवाः ॥७३॥ का दाम राय रहस्सियर्ग करयल० एवं क्यासी-धं खलु सामी! मंदिसेणे कुमारे रजेय जाव मुग्छिते इच्छति सू०२७ तुम्भे जीवियाती ववरोवित्ता सयमेव रज्वसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरिसए, तते से सिरिदामे राया दचित्तस्स अलं० अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म आसुरुसेजाव साहहु णंदिसेणं कुमारं पुरिसेहिं सदि गिण्हा वेति, एएणं विहाणेणं बझं आणवेति, तं एवं खलु गोयमा! दिसणे पुत्ते जाव विहरति, मन्दिसणे कुमारे इभी चुए कालमासे कालं किचा कहिं गरिहिइ कहिं उवजिहिइ ?, गोयमा ! दिसेणे कुमारे सहि वा साई परमाउयं पालहत्ता कालमासे कालं किचा हमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव ततो हस्थिणाठाउरे णगरे मच्छत्ताए उववजिहिति, से णं तस्थ मच्छीएहि वधिए समाणे तत्येव सेडिकुले चोहि सोहम्मे हकप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुचिहिति परिनिविहिति सम्वदुक्खाणमत करेहिति, पर्व खलु जंबू। निक्खेयो छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नोसिबेमि (सू०२७) ण्डमग्झयणे सम्म ॥३॥ | १'पूर्व खलु जंबू!' इत्यादि निक्षेपो' निगमनम् षष्टाध्ययनस्य यावत् 'अयमहेत्यादि 'बेमिति प्रवीच्यह भगवतः समापे vil७३। ट्र अमुं व्यतिकर विदित्वेत्यर्थः ।। षष्ठाभ्ययनविवरणं, नन्दिवर्द्धनवाधिकारो हि समाप्तः॥५॥. . [३०] अत्र षष्ठं अध्ययनं परिसमाप्तं ~854

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