Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 74
________________ आगम (११) प्रत सूत्रांक [२३] दीप अनुक्रम [२६] विपाके कम्मे० सुवसुं पावकम्मं समजिणित्ता कालमासे कालं किचा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उबबन्ने, संसारो तहेव जाव पुढवीए, से णं ततो अनंतरं उब्वहित्ता वाणारसीए नयरीए मच्छत्ताए उववज्जिहिति, से णं तत्थ णं मच्छबंधिएहिं वहिए तत्येव वाणारसीए नयरीए सेडिकुलंसि पुत्तत्ताए पचायाहिति ॥ ६७ ॥ ४ बोहिं बुझे० पव्य० सोहम्मे कप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहिति निक्खेवो दुहविवागाणं चोत्थस्स | अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते । (सू० २३) चोत्थं अज्झयणं सम्मतं ॥ ४ ॥ “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः ) श्रुतस्कंधः [१], अध्ययनं [४] मूलं [२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः श्रुत० १ 'निक्खेवो'सि 'एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण चत्थस्स अायणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते' इत्येवंरूपं निगमनं वा ॥ ६७ ॥ ध्यमिति । शेषमुपयुज्य प्रथमाध्ययनानुसारेण व्याख्येयमिति चतुर्थाध्ययनविवरणम् ॥ ४ ॥ Education Internationa For Pasta Use Only अत्र मूल संपादने शीर्षक-स्थाने सूत्र क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते यत् सू० २३ स्थाने सू० २० इति क्रम मुद्रितं अत्र चतुर्थ अध्ययनं परिसमाप्तं ४ शकटा. भवान्त राणि सू० २० ~73~ waryra

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