Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 73
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रुतस्कंध: [१], ------------------------ अध्य यनं [४] ----------------------------- मूलं [२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२३] वजिहिह, सगडे णं दारए गोयमा! सत्तावणं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अब्रेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं अओमयं तत्तसमजोहभूयं इत्थिपडिम अवयासाविते समाणे कालमासे कालं किया इमीसे रयणपभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिति, सेणं ततो अणंतरं उबहित्ता रायगिहे गरे मातंगकुलंसि जुगलत्ताए पचायाहिति, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिवत्तवारसगस्स इमं एपारूवं गोणं नामधेनं करिस्संति, तं होऊ णं दारगं सगडे नामेणं होऊ णं दारिया सुदरिसणानामेणं, तते णं से सगडे दा रए उम्मुकवालभावे जोवण [गमणुपत्ते०] भविस्सइ, तए णं सा सुदरिसणावि दारिया उम्मुफयालभावा है(विषणय) जोब्बणगमणुप्पत्ता रूवेण य जोवण य लावणेण य उशिहा उकिट्टसरीरा यावि भविस्सह, तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूवेण य जोव्वणेण य लावणेण य मुच्छिए सुदरिसणाए सद्धिं उरा-18 लाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सति, तते णं से सगडे दारए अन्नया कयाई सयमेव कूडगाहित्तं उवसंपजिसाणं विहरिस्सति, तते णं से सगडे दारए कूडगाहे भविस्सइ अहम्मिए जाव दुष्पडियाणंदे एय-1 दीप अनुक्रम %A5ॐॐॐॐ (२६] १'अओमय' ति अयोमयी 'त' तप्ता, कथम् । इत्याह 'समजोहभूयंति समा-तुल्या ज्योतिषा-वहिना भूता या सा तथा| ताम् । 'अवयासाविए'त्ति अवयासितः-आलिङ्गितः। २ 'जोवण भविस्सइ'त्ति 'जोब्बणगमणुपत्ते अलं भोगसमत्थे यावि भविस्सति' इत्येवं द्रष्टव्यम् । ३'त सत्ति 'लए णं सा' इत्येवं दृश्यम् । 'विन्नय'त्ति एतदेवं दृश्य-विण्यायपरिणयमेत्ता'। ~72~

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