Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 71
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१] ... .....------ अध्ययनं [४] ........ ... .- मूलं [२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२१] दीप अनुक्रम THIताई याहयाई अयमसाई जाच महिसमंसाई तवएसु य कवल्लीम य कंदूएसु य भजणेसु य इंगालेसु य तलंति भजेंति य सोल्लयंति य२ ततो रायमगंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, अप्पणाविय णं से छन्नियए छा-14 गलीए तेहिं बहुविह० मंसेहिं जाव महिसमंसेहिं सोल्लेहि यतलेहि य भज्जेहि य सुरंच आसाएमाणे विहरति, तते णं से छन्नीए य छगलीए एयकम्मे प०वि०स०सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समजिणित्ता सत्तवाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किचा चोत्थीए पुढवीए उकोसेणं दससागरोचमठिइएसु नेर-I इयत्ताए उववन्ने (सू०२१) तते णं तस्स सुभद्दसत्यवाहस्स भद्दा भारिया जाव निदुया यावि होत्था, जाया जाया दारगा विनिहायमावति, तते णं से छन्नीए छागले चोत्थीए पुढवीए अणंतर पव्वहिता इहेव साहजणीए नयरीए सुभहस्स सत्यवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने, तते णं सा भद्दा सत्यवाही अन्नया कयाई नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं दारगं पयाया, तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेतं चेव सगडस्स हेटातो ठाति दोचंपि गिण्हावेंति अणुपुब्वेणं सारक्खंति संगोवेति संवहँति जहा उज्झियए जाव जम्हाणं अम्हं इमे दारए जायमेत्ते चेव सगडस्स हेट्ठा ठाविए तम्हा णं होऊ णं अम्हं एस दारए सगडे नामेणं, सेसं जहा उज्झियते, सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगते मायावि कालगया, सेऽवि सयाओ गिहाओ नि १ 'सुभद्दे लवणे काल'त्ति अयमर्थः-'सुभदे सत्थवाहे लवणसमुद्दे कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्य'ति । [२४] ~ 70~

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