Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 78
________________ आगम (११) प्रत सूत्रांक [२५] दीप अनुक्रम [२८] विपाके श्रुत० १ “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र - ११ ( मूलं + वृत्तिः ) श्रुतस्कंधः [१], अध्ययनं [५] मूलं [२५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः ।। ६९ ।। ४ * ॐ संपलग्गे यावि होत्था पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरह, इमं च णं उदायणे राया पहाए जाब विभूसिए जेणेव पडमावई देवी तेणेव उवागच्छद्द, वहस्सतिदत्तं पुरोहियं परमावतीदेवीए सर्द्धि उरालाई भोग भोगाई भुंजमाणं पासति आसुरुते तिवलिं भिउडिं साहहुवहस्सतिदन्तं पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेति जाब एएणं विहाणेणं वजनं आणाविए, एवं खलु गोधमा ! बहस्सतिदत्ते पुरोहिए पुरापोराणाणं जाव विहरह । वहस्सतिदत्ते णं भंते! दारए हओ कालगए समाणे कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति ?, गोयमा ! वहस्सतिदत्ते णं दारए पुरोहिए चोसद्धिं वासाई परमाउयं पालता अज्जेव तिभा गावसेसे दिवसे सूलीयभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किया इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेब पुढवी, ततो हत्थिणाउरे नगरे मिगन्ताए पचायाहस्सति, से णं तत्थ वाउरितेहिं बहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नगरे सेहिकुलंसि पुत्तत्ताए०, बोहिं० सोहम्मे कप्पे विमाणे० महाविदेहे वासे सिज्झिहिति निक्खेवो । (सू० २५) । पंचमं अज्झयणं सम्मतं ॥ ५ ॥ Education Internation For Parts Only अत्र मूल संपादने शीर्षक-स्थाने सूत्र क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते यत् सू० २५ स्थाने सू० २२ इति क्रम मुद्रितं अत्र पंचमं अध्ययनं परिसमाप्तं ~77 ~ ५ बृहस्प. परखीतो नाशः सू० २२ ॥ ६९ ॥ wor

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