Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रतस्कंध: [१] ... .........------ अध्ययनं [६] ...... ... .- मूलं [२६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
विपाके श्रुत०१
प्रत सूत्रांक
॥७१॥
[२६]
दीप अनुक्रम
चिट्ठति, तस्स णं दुजोहण. चारगस्स बहवे सिलाण य लउडाण य मोग्गराण य कनंगराण य पुजा णिगरा नन्दिवचिट्ठति, तस्स णे (तए णं से) दुज्जोहण चारगास्स बहवे तंताण य वरत्ताण य वागरजाण य वालयसु- र्धना. कुसरजूण य पुंजा निगरा त चिट्ठति, तस्स णं दुजोहण चारग स्स बहवे असिपत्ताण य करपत्ताण प खुर-IM मारलोभः पत्ताण य कलंबचीरपत्ताण य पुंजा गिरा चिट्ठति, तस्स णं दुजोहण. चारगस्स बहवे लोहखीलाण या सू० २६ कैडगसकराण य चम्मपहाण य अल्लपल्लाण य पुंजा निगरा चिट्ठति, तस्स णं दुजोहण. चारग०स्स बहवे सूतीण य डंभणाण य कोहिल्लाण प पुंजा निगरा चिट्ठति, तस्सणं दुजोहण चारगस्स बहवे संस्था(पच्छा)ण य पिप्पलाण प कुहाडाण य नहच्छेयणाण य दम्भतिणाण य पुंजा निगरा चिट्ठति, तते णं से दुजोहणे
'सिलाण यत्ति दृषदा 'लउलाण यत्ति लगुडाना 'मुग्गराण यति व्यक्त 'कनंगराण यति काय-पानीयाय नगरा:बोधिस्थनिश्चलीकरणपाषाणास्ते कनङ्गराः कानंगरा वा-दंपन्नंगरा इत्यर्थः । 'तए णं से'ति एतस्य स्थाने 'तस्स 'ति मन्यामहे एतस्यैव सङ्गतस्यात् पुस्तकान्तरे दर्शनाचेति । २ 'असिपत्ताण यति असीनां 'करपत्ताण यत्ति क्रकचानां 'खुरपत्ताण य'त्ति क्षुराणां | 'कलंबचीरपत्ताण यत्ति कबु(ल)म्बचीर:-शस्त्रविशेषः । ३ 'कडि(कडग)सकराण य वंशशलाकानां 'चम्मपट्टाण यत्ति बर्हाणाम् || 'अल्लपल्लाण यति अलीना-वृश्चिकपुच्छाकृतीनां 'डंभणाण य'ति यैरप्रिप्रतापितैलोशलाकादिभिः परशरीरे उत्पाद्यते तानि दुम्भकानि 'कोहिल्लाणंति इखमुद्रविशेषाणां । ४'पच्छाण यत्ति प्रच्छनकाना 'पिप्पलाण यति इस्वक्षुराणां कुठारा नखळे- ॥७१॥ दनकानि दर्भाश्च प्रतीताः।
544RECSAX
[२९]
~81~

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132