Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(११)
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ------------------------ अध्ययनं [३] ----------------- मूलं [१८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
विपाके तते णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधातीए जाव परिवहूइ (सू०१८) तते णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुकवा-18|३ अभग्नश्रुत०१लभावे याचि होत्था अह दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ उप्पि पासाए भुजमाणे विहरह, तते णं से वि- सेनाध्य. ॥६ ॥
जए चोरसेणावई अन्नया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते, तते णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहिं चोरसतेहिं सद्धिं | अभग्नसेसंपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्डिसकारसमुदएणं णीहरणं नस्य पल्लीकरेति २त्ता बहूई लोइयाई मयकिचाई करेति र केवइकालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्या, तते गं ते पंच चो- पतिता रसयाई अन्नथा कयाइं अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया २ चोरसेणाचइत्ताए अभिसिं- सू०१९
[१८]
दीप अनुक्रम
[२१]
१'अट्ठदारियाओ'त्ति, अस्यायमर्थः-'तए णं तस्स अभग्गसेणस्स कुमारस्स अम्मापियो अभग्गसेणं कुमार सोहणसि तिहिकरणणक्खत्तमुटुत्तसि अटुहिं दारियाहिं सद्धिं एगदिवसेणं पाणि गिहाविंसुत्ति, यावत्करणादिदं दृश्य-तए णं तस्स अभग्गसे|णरस कुमारस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीईदाणं दलयति ति 'अडओ दाओ'त्ति अष्ट परिमाणमस्येति अष्टको दायो-दानं वाच्य इति शेषः, स चैवम्-'अट्ठ हिरण्णकोडीओ अहसुवण्णकोडीओ इत्यादि यावत् 'अट्ठ पेसणकारियाओ अन्नं च विपुलवणकणगरवणमणिमोत्तिवसंखसिलप्पवालरत्तरयणमाइयं संतसारसावएजमिति, 'उर्णि मुंजइति अस्थायमर्थः-'तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उर्षि पासायवरगते फुट्टमाणेहि मुयंगमत्थरहिं वरतरुणिसंपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धेहिं नायरहिं उबगिजमाणे विउले माणुस्सए कामभोगे पश्च-18 | गुब्भवमाणे विहरति ।
॥६॥
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