Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 61
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ------------------------ अध्ययनं [३] ----------------- मूलं [१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: 6964 प्रत सूत्रांक [१९] * दीप अनुक्रम चति । तते णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाते अहम्मिए जाव कप्पायं गेहति, तते णं से जाणचया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहुगामघातावणाहिं ताविया समाणा अण्णमन्नं सद्दावेंति २ त्ता एवं बयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरिमतालस्स गरस्स उत्सरिल्लं जण-| वयं बहहिं गामघातेहिं जाव निद्धणं करेमाणे विहरति, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया। पुरिमताले गरे महवलस्स रन्नो एयमट्ट विनवित्तते, तते गं ते जाणवया पुरिसा एपमह अन्नमण्णेणं पडिसुणेति २ महत्थं | महग्धं महरिहं रायरिहं पाहडं गेण्हेंति २त्ता जेणेव पुरिमताले णगरे तेणेव ज्वागते २ जेणेव महम्बले राया तेणेव उवागते २ महन्थलस्स रन्नो तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति करयलअंजलिं कहु महब्बलं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! सालाडवीए चोरपल्लीए अभग्गसेणे चोरसेणावई अम्हे बहुर्हि गामघातेहि य जाव निद्धणे करेमाणे विहरति, तं इच्छामि णं सामी! तुझं बाहुच्छायापरिग्गहिया निन्भया निरुषसग्गा सुहेणं परिवसित्सएत्तिकहु पादपडिया पंजलिउडा महब्बलं रायं एतमढ़ विण्णवेंति, तते णं से महन्धले राया तेर्सि जणवपाणं पुरिसाणं अंतिए एयमह सोचा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडिं निलाडे साहहु दंडं सदावेति २ सा एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! सालाडवि घोरपल्लिं १ 'महत्य'ति महाप्रयोजनं 'महग्यंति बहुमूल्यं 'महरिहति महतो योग्यमिति । २ 'दंड'ति पण्डनायकम् । 22 HORSERY CRACTICNGS SC (२२ ~60~

Loading...

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132