Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 63
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ------------------------ अध्ययनं [३] ----------------- मूलं [१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१९] दीप अनुक्रम [२२] डिसेहित्तए, तए णं ताई पंच चोरसताई अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तहत्ति जाव पडिमुणेति, तते णं से का अभग्गसेणे चोरसेणावई विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उबक्खडावेति २सा पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं दाबहाते जाव पायच्छिते भोयणमंडसि तं विपुलं असणं सरंच आसाएमाणा ४ विहरति, जिमियभुत्तुत्त-|४|| हैरागतेवि अ णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं अल्लं चम्म दुरूहति अल्लं चम्म दुरूहहत्ता सण्णबद्ध जाव पहरणेहिं मग्गइएहिं जाव रवेणं पुवावरणहकालसमपंसि सालाडवीओ चोरद्रापल्लीओ णिग्गच्छद चोरपल्लीओ णिगच्छइत्ता विसमदुग्गगहणं ठिते गहिय भत्तपाणे तं दंडं पडिवाले माणे चिट्ठति, तते णं से दंडे जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई सेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छित्ता अभग्गसेणेणं चोरसेणावतिणा सद्धि संलग्गे यावि होत्या, तते णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तं दंडं खिपामेव हयमहिय जाच पडिसेहिए, तते णं से दंडे अभग्गसेणेण चोरसेणावहणा हय जाव पडिसेहिए स-18 १ 'मग्गइतेहिं हस्तपाशितैः, यावत्करणात् 'फलिएही'त्यादि दृश्यम् । २ 'विसमदुग्गगहणं ति विषम-निनोन्नतं दुर्गदुष्प्रवेशं गहन-वृक्षगहरम् । ३ 'संपलग्गे'त्ति योद्धं समारब्धः। ४ हयमहिय'ति यावत्करणादेवं दृश्यम्-'यमहियपवरवीरघाइयविवडियधिधयपडाग हतः सैन्यस्य हतत्वात् मथितो मानस्व मथनात् प्रवरवीरा:-मुभटाः पातिता:-विनाशिता यस्य स तथा, विपतिताः चिह्नयुक्तकेतवः पताकाश्च यस्य स तथा, ततः पदचतुष्टयस्य कर्मधारयः, 'दिसोदिसिं विप्पडिसेहिति'त्ति सर्वतो रणान् निवर्तयति । ACCOCCAKACK ~62~

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