Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रतस्कंध: [१], .....................-- अध्य यनं [२]---- -- -- मूल [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
विपाके
प्रत
सूत्रांक
॥४८॥
[१०]
दीप अनुक्रम [१३]
नाम कूडग्गाही होत्या अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे । तस्स गं भीमस्स कूडग्गाहस्स उप्पला नाम भा- सज्झिदारिया होत्था अहीण, तते णं सा उच्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाई आवनसत्ता जाया यावि होस्था, तकाध्य.
तते णं तीसे जुप्पलाए कृडगाहिणीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अपमेयारूवे दोहले पाउन्भूते-धन्नाओ|उमितकण ताओ अम्मयाओ ४ जाव सुलद्धे जम्मजीविए (यफले) जाओ णं बटणं णगरगोरुवार्ण सणाहाण य जावस्य पूर्वभवः
सू.१० | " १'अहम्मिए'त्ति धर्मेण परति व्यवहरति वा धार्मिकस्तनिषेधादधामिका, यावत्करणादिदं श्यम्-'अहम्माणुए' अधमान्-पापलोकान् अनुगच्छत्तीत्यधर्मानुगः 'अहम्मि?' अतिशयेनाधर्मो-धर्मरहितोऽम्मिष्टः 'अहम्मखाई' अधर्मभाषणशीलः अधाम्पिकप्रसिद्धिको वा 'अधम्मपलोई अधानेव-परसम्बन्धिदोषानेव प्रलोकयति-प्रेक्षते इत्येवंशीलोऽधर्मप्रलोकी 'अहम्मपलजणे' अधर्म एव-हिंसादौ प्ररज्यते-अनुरागवान् भवतीत्यधर्मप्ररजनः 'अहम्मसमुदाचारों' अधर्मरूपः समुदाचार:-समाचारो यस्य स तथा 'अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे'त्ति अधर्मेण-पापकर्मणा वृत्ति-जीविकां कल्पयमान:-कुर्वाणः तच्छील इत्यर्थः 'दुस्सीले' दुष्टशीलः 'दुचए' अविद्यमाननियम इति 'दुप्पडियाणंदे दुष्प्रत्यानन्दः बहुमिरपि सन्तोषकारणैरनुत्पद्यमानसन्तोष इत्यर्थः । २ 'अहीण त्ति 'अहीणपुण्णपंचेंदियसरीरे'यादि दृश्यम्। ३ 'आवनसत्त'ति गर्भे समापनजीवेत्यर्थः । ४ 'धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ'चि अम्बा-जनन्यः, इइ यावत्करणादिदं दृश्यं-पुन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ कयत्याओ णं ताओ अम्मयाओ। ॥४८॥ कयलक्खणाओ णं ताओ, तासिं अम्मयाणं सुलद्धे जम्मजीवियफले'त्ति व्यकं च ।
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