Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 40
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१], ...................---- अध्य यनं [२] ------.. -...---- मूलं [११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: विपाके श्रुत०१ प्रत सूत्रांक ॥५०॥ [११] डिपुन्नाणं दारय पचाया (सू०१०) तते णं तेणं दारए णं जायमेत्तेणं चेव महया महया सद्देणं विधुढे विसरे|8| उनिमआरसिते, तते णं तस्स दारगस्स आरसियसई सोचा निसम्म हत्थिणाउरे नगरे बहवे णगरगोरुवा जावतकाध्य. वसभा य भीया उब्विग्गा सवओ समंता विष्पलाइत्था, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं गोन्नासनामधेनं करेंति, जम्हा णं अम्हे इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया (चिच्ची) सद्देणं विपुढे विस्सरे आर-18 नामहेतुः |सिए तते णं एयस्स दारगस्स आरसियं सई सोचा निसम्म हत्थिणाउरे बहवे णगरगोरुवा जाव भीया ४ सू. ११ सब्बओ समंता विप्पलाइत्था तम्हाणं होउ अम्हं दारए गोत्तासए नामेणं, तते णं से गोत्तासे दारए उ-12 म्मुकबालभावे जाते यावि होत्या, तते णं से भीमे कूडग्गाहे अन्नया कयाई कालधम्मुणा संजते. तते णं से गोत्तासे दारए बहूणं मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरिजणेणं सद्धिं संपरिबुडे रोयमाणे कंदमाणे विलचमाणे भीमस्स कूडग्गाहिस्स नीहरणं करेति नीहरणं करित्ता बहूई लोइयमयकजाई करेति, तते णं से सुनंदे L दीप अनुक्रम **+ -CA CACACCCCCCXXC% [१४] AM ॥ ५. 'भीया' इत्यत्र 'तत्था तसिया संजायभया' इति दृश्य, भयोत्कर्षप्रतिपादनपराण्येकार्थिकानि चैतानि । २ 'सब्बओत्ति सर्वदिक्षु 'समंत'त्ति विविक्षु चेत्यर्थः, 'विपलाइत्य'ति विपलायितवन्तीति । ३ 'अयमेयारूवति इदमेवप्रकारं वक्ष्यमाणस्वरूपमि४ त्यर्थः । ४ 'महया २ चिच्ची'त्ति महत्ता २ पिश्चीयेवं चित्कारेणेत्यर्थः । ५ 'आरसिय'ति आरसितं-आरटितम् । ६ 'सोच'त्ति अवधार्य। ~39~

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