Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 48
________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रतस्कंध: [१], ...................---- अध्ययनं [२] ------.. ...----- मूलं [१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: श्रुत०१त प्रत सूत्रांक [१४] विपाकेजोव्वणगमणुप्पत्ते विण्णयपरिणयमित्ते रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किटे उक्किसरीरे भविस्सह, उझि तिते णं से पियसेणे णपुंसए इंदपुरे णगरे बहवे राईसर जाव पभिइओ पहूहि य विजापओगेहि य मंतचुनेहिकाय Iय हियउड्डावणाहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएहि य अभिओगिता तिक उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सति, तते णं से पियसेणे णपुंसए एयकम्मे० सुबहुं । पावकम्मं समजिणित्ता एकवीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए हैं। सू०१४ पुढवीए णेरइयत्ताए उववज्जिहिति, तसो सिरिसिधेसु सुंसुमारे तहेव जहा पढमो जाव पुढवि० सेणं तओ ॥५४॥ दीप % 25E5% 95% अनुक्रम [१७] १'उकिडे'त्ति सत्कर्षवान , किमुक्तं भवति ?-'उकिट्ठसरीरे'चि । २ विद्यामचचूर्णप्रयोगैः, किंविधः १ इत्याह-हिययुड्डावणेहि यत्ति हृदयोज्ञापनैः-शून्यचित्तताकारकै: 'निण्हवणेहि यचि अदृश्यताकारकै:, किमुक्तं भवति ?-अपहृतधनादिरपि परो धनापहारादिक थैरपद्धते-न प्रकाशयति तदपहवता अतस्तैः 'पण्हवणेहि यत्ति प्रसवनैः थैः परः प्रभुति भजते प्रइत्तो | भवतीत्यर्थः 'वसीकरणेहि यत्ति वश्यताकारकैः, किमुक्तं भवति-आभिओगिएहिंति अभियोगः-पारवश्यं स प्रयोजनं येषां | ते आभियोगिकाः अतस्तैः, अमियोगध द्वेधा, यहाह-"दुविहो खलु अभिओगो दब्वे भावे य होइ नायन्यो । दरमि होति | जोगा विजा मंता व भावमि ॥ १॥" [द्विविधः खल्वनियोगो द्रव्ये भावे च भवति ज्ञातव्यः । द्रव्ये भवन्ति योगाः विद्या मनाच भावे ॥१॥'अभितोगित्तति वशीकृत्य । ~ 47~

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