Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
(११)
श्रुतस्कंध: [8], ..............------------ अध्य यनं [२] --------------------- मूल [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
SAGAR
PR सा अट्टिमुहिजाणुकोप्परपहारसंभग्गमहितगत्तं करेति करेत्ता अवउडगवंधणं करेति २त्ता एएणं विहा
णणं वझं आणावेति, एवं खलु गोयमा! उज्झियते दारए पुरापोराणाणं कम्माणं जाव पचणुम्भवमाणे विहरति । (सू०१३) उज्झियए णं भंते ! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिं उवचजिहिति?, गोतमा! उज्झियते दारए पणवीसं वासाई परमाउयं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे
सूलीभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किचा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिति, से Kाणं ततो अणंतर उध्वहित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयहगिरिपायमूले वानरकुलसि चाणरत्ताएर
उववजिहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने जाते जाते वानरपल्लए वहेहतं ऐयकम्मे [ एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमुदायारे] कालमासे कालं किचा इहेव जंबुडीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे णगरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पचायाहिति, तते णं तं दारयं अम्मापियरो जायमित्तक बद्धेहिंति नपुंसगकम्मं सिक्खावेहिं ति, तते णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो णिवत्तयारसाहस्स इमं एयारूवं णामधेज करेंति तं०-होऊ णं पियसेणे णामं णपुंसए, तते णं से पियसेणे गपुंसए उम्मुकबालभावे ___१ 'पुरापोराणाणं' इत्यत्र यावत्करणात् 'दुच्चिन्नाणं दुप्पद्धिकताण' इत्यादि दृश्यम् । २ 'वानरपेलए'ति वानरडिम्भान् ।
३ 'तं एयकम्मे 'त्ति तदिति-तस्मात् एतत्कर्मा, इहेदमपरं दृश्यम्-एयप्पहाणे एयविजे एयसमुदाचारेति । ४ 'बद्धेहिति'त्ति ४ वर्द्धितकं करिष्यतः।
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[१३]
दीप अनुक्रम
[१६]
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