Book Title: Aagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 57
________________ आगम “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) (११) श्रतस्कंध: [१], ................----- अध्ययनं [३] -------.... --.--- मूलं [१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१७] दीप अनुक्रम [२०] विहरति, तते णं से निन्नए अंडवाणियए एयकम्मे ४. सुबहुं पावकम्मं समजिणित्ता एगं वाससहस्सं परमा-| उयं पालइसा कालमासे कालं किच्चा तचाए पुढवीए उक्कोससत्तसागरोवमठितीएमु णेरइएमु णेरइयत्ताए दाउववन्ने (सू०१७) से णं तओ अणंतरं उव्वहित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्साए श्ववन्ने, तते णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नपा कयाई तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउम्भूए-धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहुहिं मि-13 तणाइणियगसयणसंबंधिपरियणमहिलाहिं अण्णाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिखुडा पहाया कयबलिकम्मा माजाव पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च आसाएमाणी विसाए-I |माणी विहरंति जिमियभुत्तुसरागयाओ परिसनेवत्धिया सन्नद्धबद्ध जाव पहरणावरणा भरिएहि य फलि-1 एहिं णिकिहाहिं असीहि अंसागतेहिं तोणेहिं सजीवेहिं धणूहि समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहि या १ 'जिमियभुत्तुत्तरागयाओ'त्ति जेमिता:-कृतभोजनाः भुक्तोत्तर-भोजनानन्तरमागता चित्तस्थाने यास्तास्तथा । २ 'पुरिसनेवस्थिति कृतपुरुषनेपथ्याः। ३ 'सन्नद्ध' इत्यत्र यावत्करणाविदं दृश्यं सन्नद्धबवम्मिायकवाझ्या अपीलियसरासणपट्टिया पिणदगे| विजा विमलवरचिंधपट्टा गहियाउहपहरणावरणति व्याख्या तु मागिवेति, 'भरिएहि ति हसपाशितैः 'फलिएहि ति स्फटिका निकद्वाहिति कोशकादाकृष्टः 'असीहिं'ति खड्नेः 'अंसागएहिं ति स्कन्धमागतैः पृष्ठदेशे बन्धनात् 'तोणेहिति शरधीभिः 'सजीवेहि"ति स. जी:-कोट्यारोपितप्रत्यः 'धणूहिंति कोदण्डफैः 'समुक्खित्तेहिं सरेहिं'ति निसर्गार्थमुरिक्षनर्वाणैः 'समुल्लासियाहिं'ति समुल्लासिताभिः अन. airmaanaturary.orm ~ 56~

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